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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग जगाना बहुत कठिन हो गया है। दूसरी बात है प्राण शक्ति को चाहिए पूरा श्वास । हम नाक से श्वास लेते हैं, वह भी पूरा नहीं लेते। बहुत छोटा श्वास लेते हैं। पूरा प्राण का तत्त्व जाता ही नहीं है। जब तक श्वास दीर्घ नहीं होता, प्राण तत्त्व पर्याप्त मात्रा में कैसे जाएगा और जो शरीर के भीतर दूषित तत्त्व जमा हुआ है वह बाहर कैसे निकलेगा ।
श्वास की भी सीमा है। वह नाक से लिया जाता है और श्वास नलिका में से होता हुआ फेफड़े में पहुंच जाता है। उससे आगे कोई रास्ता नहीं । श्वास का रास्ता बहुत छोटा है हमारे शरीर में। शरीर बहुत बड़ा है। शरीर श्वास के आधार पर नहीं चल रहा है। हम लोग श्वास के आधार पर नहीं जी रहे हैं। हम जिससे जी रहे हैं वह है- प्राण श्वास तो प्राण का एक स्फुलिंग है, एक चिनगारी मात्र है। मूल शक्ति है- प्राण। हम प्राण के द्वारा जी रहे हैं। प्राण हमारे पूरे शरीर में फैला हुआ है। प्राण के लिए शरीर का पूरा मार्ग खुला हुआ है। कोई भी मार्ग ऐसा नहीं, जहां प्राण-शक्ति न जा सके और यदि प्राण-शक्ति न जा सके तो वह अंग भी फिर जीवित अंग नहीं होगा, मृत अंग होगा। पूरे शरीर से हम प्राण को ग्रहण करते हैं। ऊपर से प्राण को लेते हैं, नीचे से प्राण को लेते हैं, तिरछी दिशाओं से प्राण को लेते हैं, दाएं-बाएं, आगे-पीछे, एक भी शरीर का कण ऐसा नहीं, जिनके द्वारा प्राण-शक्ति को न ले सकें, लेते हैं।
जीवन है प्राण
श्वास को रोका जा सकता है। एक मिनट भी रोका जा सकता है, एक दिन भी रोका जा सकता है और एक वर्ष भी रोका जा सकता है। अश्वास की साधना की जा सकती है किन्तु अप्राण होकर एक क्षण भी नहीं रहा जा सकता। यदि हमारे शरीर के प्राण के स्रोत अलग हो जाएं तो शरीर एक सेकेण्ड भी नहीं जी सकता । सारे शरीर में प्राण के स्रोत हैं, द्वार हैं जिनमें से प्राण जाता है। शरीर का कोई भी हिस्सा नहीं, जो प्राण का स्रोत न हो। एक घटना पढ़ी थी- किसी व्यक्ति ने शरीर पर लेप लगा लिया, रोम बंद कर दिए, छिद्र बंद कर दिए। सो गया । वह सुबह जीवित नहीं मिला। जीवित रहना संभव भी नहीं है। जब प्राण के द्वार बंद हो जाएं तो फिर प्राणी का जीना कभी संभव नहीं हो सकता। हमारी मूल शक्ति है - प्राण की शक्ति । श्वास का प्रयोग प्रारंभिक प्रयोग है। यह भी प्रयोग है कि पूरे शरीर से. प्राण को ले सकें। कायोत्सर्ग की मुद्रा में लेट गए, एक संकल्प के साथ, पूरे शरीर से श्वास लेना शुरू किया। प्राण का ग्रहण शुरू किया और इस अनुभव में लग गए
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