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जीवन विज्ञान-शिक्षा की अनिवार्यता
५५ छोड़कर विद्या की जितनी शाखाएं हैं, उनके द्वारा यह कार्य संभव नहीं हो सकता । उनका प्रयोजन दूसरा है और उनकी निष्पत्ति दूसरी है । अपने आपको, अपने शरीर और वाणी को, अपने मन और बुद्धि को, इन सबसे परे अदृष्ट जगत् में काम करने वाले भावतंत्र को यदि प्रभावित किया जा सकता है तो वह केवल अध्यात्म के द्वारा ही किया जा सकता है।
ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने श्वास को, अपने प्रकम्पनों और अपनी विद्युत् को देखता है, अपने रसायनों तथा अपने में होने वाले रासायनिक परिवर्तन को देखता है । यह दर्शन अनुशासन की नींव को मजबूत करता है, शक्तिशाली बनता है।
इस सारी प्रक्रिया से गुजरने वाले में यह विश्वास होना चाहिए★ आत्मानुशासन तब पैदा होगा जब प्राणशक्ति का संतुलन होगा। ★ आत्मानुशासन तब पैदा होगा जब प्रियता और अप्रियता से मुक्त
क्षण में जीने का अभ्यास होगा। ★ आत्मानुशासन तब पैदा होगा जब शरीरबल, मनोबल, विचारबल
और बुद्धिबल में संतुलन स्थापित होगा। इस प्रक्रिया के बिना आत्मानुशासन नहीं होगा और आत्मानुशासन के बिना वह अनुशासन, जो चाहा जा रहा है, नहीं आएगा । यह निश्चित मानकर उपयुक्त दिशा में हमारा प्रस्थान होना चाहिए। इस प्रस्थान का अर्थ है-जीवन विज्ञान की अनिवार्यता की स्वीकृति ।
अभ्यास
१. अध्यात्म की भाषा में शस्त्र की व्याख्या कीजिए। २. क्या आकांक्षा भी शस्त्र है ? वह शस्त्र क्यों है, समझाइए ? ३. जैन मुनियों के लिए अचिकित्सा का सिद्धान्त क्यों बताया गया ? ४. भाषा और मन के संबंध को स्पष्ट करें ।
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