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जावन विज्ञान : आधार और प्रक्रिया
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प्रक्रिया का मौलिक आधार है। जब तक आधार की बात समझ में नहीं आती, ठीक उपचार नहीं होता। कभी-कभी ऐसा होता है कि उपचार करने वाला स्वयं बीमार पड़ जाता है तब उपचार की कठिनाई पैदा हो जाती है।
शरीर, श्वास, वाणी और मन ये चार तत्त्व हैं उपचार करने वाले । जब ये ही बीमार हो जाते हैं तब हमारे सामने समस्या पैदा हो जाती है। इनको स्वस्थ बनाएं, सशक्त बनाएं, शिक्षित करें तो हमारी बाधाएं निरस्त हो सकती हैं।
प्रशिक्षण की प्रक्रिया
इनको प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया क्या है, यह एक प्रश्न है। प्रक्रिया के चार तत्त्व हैं-प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, कायोत्सर्ग और जागरूकता। देखना सीखें, ध्वनि तरंग पैदा करना सीखें, शिथिलीकरण का अभ्यास करें, शिथिल होना सीखें और जागरूकता का अभ्यास करें। यह शिक्षण की पूरी प्रक्रिया है ।
प्रशिक्षण का पहला तत्त्व है- प्रेक्षा । हमें देखना- सीखना है। भारतीय दर्शन देखने का दर्शन है। आज दर्शन का अर्थ बदल गया ! आज महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में जो दर्शन पढ़ाया जा रहा है, वह है तर्क प्रधान, अनुमान प्रधान किन्तु जो प्राचीन दर्शन रहा है, वह है देखना, प्रत्यक्षीकरण, साक्षात्कार | अनुमान नहीं, तर्क नहीं, हेतु नहीं, व्याप्ति नहीं, किन्तु साक्षात्कार, प्रत्यक्षीकरण | यह दर्शन है। हम सोचना जानते हैं, देखना नहीं जानते ।
दर्शन और चिन्तन में मौलिक अन्तर होता है । अध्यात्म की भाषा में दर्शन है - साक्षात् देखना । दर्शन का वास्तविक अर्थ यही है।
प्रत्यक्षीकरण श्वास का
श्वास की प्रेक्षा, शरीर की प्रेक्षा और चैतन्य केन्द्र की प्रेक्षा- श्वास दर्शन, शरीर दर्शन और चैतन्य केन्द्रों का दर्शन । प्रश्न होगा कि क्या देखना है श्वास को ? श्वास आता है, जाता है। हर क्षण आता है, जाता है, कभी बंद ही नहीं होता। क्या देखना है उसको ? जब तक नहीं देखते तब तक श्वास का सही मूल्यांकन नहीं हो सकता और यह शिकायत बनी रहती है कि मन कभी टिकता नहीं, बड़ा चंचल है, बहुत भागता है, कभी रुकता नहीं किन्तु जिन लोगों ने श्वास- दर्शन का अभ्यास किया है उनकी यह शिकायत समाप्त हो जाती है।
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