Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 17
________________ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन साथ-साथ तथा एक ही गति से होना चाहिए। ११ आगे उन्होंने कहा है- 'मात्र साक्षरता ही शिक्षा नहीं है जिसके माध्यम से स्त्री और पुरुष को शिक्षित किया जा सकता है। इसीलिए मैं बाल शिक्षा का प्रारम्भ उसे कोई एक महत्त्वपूर्ण हस्तकला (हैण्डिक्राफ्ट) की शिक्षा देकर करना चाहता हूँ। इससे हर स्कूल स्वावलम्बी बनाये जा सकते हैं और इस शिक्षा-पद्धति में बुद्धि तथा आत्मा का उच्चतम विकास सम्भव है। किसी भी हस्तकला की शिक्षा सिर्फ यान्त्रिक रूप से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से देनी चाहिए। १२ सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन ने भी शिक्षा को परिभाषित करते हए कहा है'शिक्षा सूचना प्रदान करने एवं कौशलों का प्रशिक्षण देने तक सीमित नहीं है। इसे शिक्षित व्यक्ति को मूल्यों का विचार भी प्रदान करना है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी व्यक्ति भी नागरिक है, अत: जिस समुदाय में वे रहते हैं, उस समुदाय के प्रति उनका भी सामाजिक उत्तरदायित्व है। १३ शिक्षा के सम्बन्ध में श्री पाठक एवं त्यागी का कहना है कि 'शिक्षा का अर्थ बालक की जन्मजात शक्तियों या गुणों को विकसित करके उसका सर्वाङ्गीण विकास करना है न कि उसके मस्तिष्क में ज्ञान को ढूंसना।१४ आज की जो शिक्षा-पद्धति है वह यही है कि बालक के मस्तिष्क को सूचनाओं से भर देना। किन्तु जब तक हम बालक के समक्ष जीवन-मूल्यों को स्पष्ट नहीं करते, तब तक हम शिक्षा के प्रयोजन को न तो सम्यक् प्रकार से समझ पायेंगे और न ही मनुष्य के दुःखों का निराकरण ही कर पायेंगे। पाश्चात्य विचारक ___पाश्चात्य शिक्षाविदों में प्लेटो का नाम अग्रणीय है। प्लेटो ने भी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत गम्भीरता से विचार किया है। उनके अनुसार शिक्षा उस प्रशिक्षण को कहेंगे जो बच्चों में उचित आदतें डाले जिससे उनके अन्दर सद्गुणों, सद्विचारों आदि का विकास हो। आगे वे कहते हैं- 'शिक्षा द्वारा युवक उस उचित तर्क की ओर प्रेरित होते हैं जो नियमानुमोदित हैं तथा जो वयोवृद्ध एवं उत्तम व्यक्तियों के अनुभवों द्वारा सच्चे अर्थ में समर्पित हैं। १५ तात्पर्य है शिक्षा वह है जो बालकों की मूल प्रवृत्तियों को अच्छी आदतों की ओर लगाती है, उचित-अनुचित सुख-दुःख एवं मित्रता आदि के भाव का भली-भाँति बोध कराती है। घृणा करनेवाली वस्तु से घृणा तथा प्रेम करनेवाली वस्तु से प्रेम करना सिखाती है। प्लेटो के अनुगामी अरस्तु ने मानव के शारीरिक और मानसिक विकास पर विशेष बल दिया है। उनके अनुसार- ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण ही शिक्षा है।'१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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