Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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शिक्षा-दर्शन : एक सामान्य परिचय ५. चेतना, अनुभूति, आख्यान, कथन, निवास के अर्थ में वेदयते रूप सम्पन्न होता
है। इस प्रकार 'विद्' के कम से कम पाँच अर्थ होते हैं-- ज्ञान, वास्तविकता, उपलब्धि, विचारण और श्रेष्ठ भावनाएँ।
शिक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न शिक्षाविदों ने अपने-अपने दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया है जिनमें कुछ भारतीय शिक्षाविद् हैं तो कुछ भारतीयेतर। भारतीय संस्कृति की दो धाराएँ हैं- वैदिक एवं श्रमण। श्रमण परम्परा के अन्तर्गत दो शाखाएँ मुख्य रूप से हैं- जैन एवं बौद्ध। जैन चिन्तन जैनागमों पर, बौद्ध विचार त्रिपिटकों पर तथा वैदिक मान्यताएँ वेदों पर आधारित हैं। अत: भारतीय शिक्षा सम्बन्धी जो भी मान्यताएँ हैं उन सबकी जानकारी इन्हीं स्रोतों से होती है। जहाँ तक पाश्चात्य शिक्षा सिद्धान्त की बात है तो इसका विस्तार यूनानी, जर्मन, फ्रांसीसी, ब्रिटिश, अमेरिकी आदि विभिन्न चिन्तनों में देखा जाता है। उनमें प्रतिपादित आदर्शवाद, यथार्थवाद, फलवाद आदि सिद्धान्तों को समझ लेने से पाश्चात्य शिक्षा सिद्धान्तों का समुचित बोध हो सकता है। पौर्वात्य और पाश्चात्य विचारकों के शिक्षा-सम्बन्धी विचारों के विवेचन निम्न प्रकार हैंभारतीय विचारक __जैन विदुषी साध्वी चन्दना का कहना है कि 'शिक्षा वह है जो स्वयं को तथा दूसरों को मुक्ति दिलाये अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति कराये। ७
बौद्ध जीवन-पद्धति के अनुसार केवल विद्वान् बन जाना ही शिक्षा का परम लक्ष्य नहीं है, बल्कि व्यक्ति को सत्यान्वेषण करना चाहिए और नैतिक गुणों को व्यवहार में उतारना चाहिए।
- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार- 'ज्ञान मनुष्य में स्वभाव सिद्ध है। वह जन्म से ही पूर्ण है। अत: मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।'
कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर के विचार न सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्ष में हैं और न बौद्धिक शिक्षा के, बल्कि उनका मानना है कि शिक्षा सृजनात्मक होनी चाहिए। उनका मत है - शिक्षा वह है जिसका मानव-जीवन के आर्थिक, बौद्धिक, कलात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन के साथ पूर्ण संस्पर्श हो। १०
___ महात्मा गांधी ने शिक्षा को व्याख्यायित करते हुए लिखा है- 'शिक्षा से मेरा तात्पर्य मनुष्य तथा बालक में जो कुछ श्रेष्ठतर है उसका सम्पूर्ण विकास करना है और वह शरीर, आँख, कान, नाक आदि शारीरिक अवयवों के उचित अभ्यास और प्रशिक्षण से हो सकता है। ...... बुद्धि के शुद्ध विकास के लिए आत्मा और शरीर का विकास
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