Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 23
________________ 14 जैनविद्या - 22-23 29. ज्योतिर्विद आशाधर, बघेरवाल सन्देश, 28/5, पृ. 53। 30. जैन ग्रन्थ उद्धारक कार्यालय सं. 1964 में हिन्दी टीका के साथ प्रकाशित। 31. (क) स्याद्वाद विद्या विशद प्रसादः प्रमेयरत्नाकरनाम धेयः। तर्क प्रबन्धो निरवद्यविद्यापीयूष पूरो वहतिस्म यस्मात् ॥ (ख) सिद्धयंकं भारतेश्वराभ्युसत्काव्यं निबन्धोज्जवलं। यस्त्रैविद्य कवीन्द्र मोहनमयं स्वश्रेयसेऽरीरचत् । (ग) योऽर्हद्वाक्यरसं निबन्धरुचिरं शास्त्रं च धर्मामृतं निर्माय न्यऽधान मुमु विदुषामानन्द सान्द्रे हृदि॥ 32. (क) माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, मुम्बई के भव्य कुमुदचन्द्रिका टीका सहित, वि.सं. 1976, पं. बंशीधर शास्त्री द्वारा संपादित-प्रकाशित । (ख) ज्ञानदीपिका संस्कृत पञ्जिका, हिन्दी अनुवादसहित भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली, वि.सं. 2034, सन् 1977, सम्पादक एवं अनुवादक सि. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री। 33. आयुर्वेद विदामिष्टज्ञं व्यक्तं संहिताम् । अष्टाङ् हृदयोदद्योत निबन्धमसृजञ्च यः॥ सागारधर्म प्रशस्ति, श्लोक 12 34. जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर सन् 1934 में प्रकाशित। 35. योमूलाराधनेष्टोपदेशदिषु निबन्धनम्, प्रशस्ति श्लोक 13। 36. व्यघतामर कोशै च क्रिया कलापुभुज्जगौ, प्रशस्ति श्लोक 13 । 37. आदि अराधनासार, प्रशस्ति श्लोक 13।। 38. भूपाल चतुर्विंशतिस्तवनाद्यर्थः। उज्जगौ उत्कृष्टं कृतवान। प्रशस्ति श्लोक 13। . 39. रोद्रटस्य व्यघात् काव्यालङकारस्य निबन्धनम्। प्रशस्ति श्लोक 14 । 40. सहस्रनामस्तवनं सनिबन्धं च योर्हताम ॥ प्रशस्ति श्लोक 141 41. योर्हन्महाभिषेका_विधि मोहतमोरविम्।। चक्रे नित्यमहोद द्योतं स्नानशोस्त्रं जिनेशिनाम् ॥ प्रशस्ति श्लोक 16। 42. रत्नत्रय विधानस्य पूजामहात्म्य वर्णनम्। रत्नत्रय विधानाख्यं शास्त्रं वितनुतेस्म यः॥ वही श्लोक 1742 । 43. अनागार धर्मामृत, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, प्रस्तावना, पृ. 45। 44. सनिबन्धं यश्च जिनयज्ञ कल्पमरीरवत्। सागार धर्म, प्रशस्ति 15। 45. जैन साहित्य एवं इतिहास। 46. त्रिषष्टि स्मृति शास्त्रं यो निबन्धालंकृतं व्यघात् । सागार धर्म, प्रशस्ति श्लोक 15 । 47. नलकच्छपुरे श्रीमन्नेमि चैत्यालयेऽसिधत् ।

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