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जैनविद्या - 22-23
जैनविद्या - 22-23
अप्रेल - 2001-2002
अप्रेल - 2001-2002
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पण्डित आशाधर एवं उनका त्रिषष्टिस्मृति शास्त्र
- प्रो. एल. सी. जैन एवं ब्र. संजय जैन
भूमिका
पण्डित आशाधर बघेरवाल जाति के जैन थे। वे प्रसिद्ध धारा नगरी के समीप नलकच्छपुर (नालछा) के निवासी थे। विक्रम की तेरहवीं सदी के उत्तरार्द्ध और चौदहवीं सदी के प्रारम्भ में असाधारण प्रतिभासम्पन्न विद्वान थे। उन्होंने लगभग 19 ग्रन्थों की रचना की थी, जिनमें से कई प्राप्त और प्रकाशित हैं तथा कुछ अब तक अनुपलब्ध हैं । इनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा का परिचय उनके न्याय, व्याकरण, काव्य, साहित्य, धर्मशास्त्र, वैद्यक आदि विविध विषयों पर अधिकार पूर्ण ग्रन्थ देते हैं । काव्य ग्रन्थों में भरतेश्वराभ्युदय काव्य स्वोपज्ञटीका सहित, राजीमती विप्रलम्भ तथा त्रिषष्टि स्मृति शास्त्र हैं। इनके ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ परमारवंशी राजाओं के इतिहास-काल जानने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं। शेष ग्रन्थ श्रावक-मुनि-आचार, स्तोत्र, पूजा, विधान तथा टीकाओं के रूप में हैं। त्रिषष्टिस्मृति ग्रन्थ के अन्त में जो प्रशस्ति दी गयी है उसके अनुसार उक्त ग्रन्थ की रचना परमार नरेश जैतुगिदेव के राज्यकाल में विक्रम संवत् 1292 में नलकच्छपुर के नेमिनाथ मन्दिर में हुई थी।