Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 62
________________ 53 जैनविद्या - 22-23 7. "अरुहा सिद्धायरिया उज्झाया साहु पंच परमेट्ठी। ते विहुं चिट्ठहि आधे तम्हा आदा हु मे सरणं ॥" आचार्य कुन्दकुन्द, अष्टपाहुड, श्री पाटनी दि. जैन ग्रन्थमाला मारौठ, मारवाड़, मोक्षपाहुड़, 104वीं गाथा। 8. वही, 6ठी गाथा। 9. तीर्थंकर भ. महावीर - (डॉ.) संजीव प्रचंडिया, सम्पादक - अहिंसावाणी, अंक अप्रेल 1969, जैन भवन, अलीगढ़ (एटा)। 10. जैनभक्त काव्य की पृष्ठभूमि, डॉ. प्रेमसुमन जैन, भारतीय ज्ञानपीठ सन्मति मुद्रणालय, वाराणसी-5, प्रथम संस्करण 1963, पृष्ठ 105 । 11. पण्डित आशाधरजी, जिनसहस्रनाम, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन 1954, 4/47 की स्वोपज्ञवृत्ति, पृष्ठ 781 12. पण्डित आशाधर, जिनसहस्रनाम वही, 4/47 तथा 4/48, पृष्ठ 78 । 13. वही श्रुतसागरी टीका, पृष्ठ 165 14. जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि - डॉ. प्रेमसागर जैन ___ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथम संस्कण 1963, पृष्ठ 106 । 15. 'यदि दं तीर्थंकर नाम कर्मानत्रानुपम प्रभावम चिन्त्य विभूति विशेषकारणं त्रैलोक्य विजयकरं तस्यास्रत्रवविधि विशेषोऽस्तीति । -- आचार्य पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ, पृष्ठ 337-338 । 16. गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष - ये पाँच कल्याणक होते हैं तथा उन अवसरों पर मनाये - जाने वाले उत्सव को 'पंचकल्याणक महोत्सव' कहते हैं। पण्डित आशाधर, जिन सहस्रनाम, 3/33 की स्वोपज्ञवृत्ति, पृष्ठ 70-71 । 17. 16 स्वप्न - ऐरावत हाथी, वृषभ, लक्ष्मी, सिंह, पूर्णचन्द्र, दो पुष्प मालाएँ, स्वर्ण के दो कलश, उदित होता हुआ सूर्य, तालाब में क्रीड़ा करती हुई दो मछलियाँ, ऊँचा सिंहासन, क्षुभित समुद्र, सुन्दर तालाब, स्वर्ग का विमान, पृथ्वी को भेदकर ऊपर आया हुआ नागेन्द्र भवन, रत्नों की राशि और जलती हुई धुआँ रहित अग्नि - देखिए महापुराण, प्रथम भाग, 12/104-119, पृष्ठ 259-2601 18. 'निर्वाति स्म निर्वाण : सुखीभूतः अनन्त सुखं प्राप्तः।' पण्डित आशाधर, जिनसहस्रनाम, वही, पृष्ठ 98। 19. उमास्वाति, तत्वार्थ सूत्र, मथुरा, 10/2, पृष्ठ 23 | 20. जैन भक्त काव्य की पृष्ठभूमि - डॉ. प्रेमसुमन जैन, भारतीय ज्ञानपीठ सन्मति मुद्रणालय, वाराणसी-5, प्रथम संस्करण-1963, पृष्ठ 124 । 21. पण्डित आशाधर, जिनसहस्रनाम, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1954, 4/47 की स्वोपज्ञवृत्ति, पृष्ठ 781

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