Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 130
________________ जैनविद्या - 22-23 121 की इच्छा से किसी कुमारी कन्या के साथ सेवन करना निषेध है अथवा इस कन्या का विवाह किसी अन्य के साथ न हो, मेरे ही साथ हो इस अभिप्राय से अर्थात् अपना विवाह करने के मन्तव्य से किसी कन्या के दोष प्रगट करना भी वर्जनीय है। किसी कन्या के साथ गांधर्व विवाह तथा किसी कन्या को हरणभर उसके साथ विवाह करना भी दोष है । ये सब परस्त्रीत्याग के अतिचार कहे गए हैं।5° दर्शनिक श्रावक को इनका त्याग करना होता है। पण्डितप्रवर इतने तक ही सीमित नहीं हैं कि व्यक्ति इन व्यसनों को स्वयं त्याग करे अपितु वह इन व्यसनों को स्वयं तो त्याग करे ही साथ ही दूसरों के लिए भी इनका प्रयोग कभी नहीं करे तभी वह इन सप्त व्यसन त्यागव्रतों को विशुद्ध रूप से पालन कर सकता है | 1 निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि पं. आशाधरजी ने 'सागारधर्मामृत' में प्रत्येक श्रावक को व्यसनों के रूप-स्वरूप का परिचय कराते हुए व्यसनमुक्त एवं विवेकपूर्ण जीवन जीने की उत्तम प्रेरणा दी है । 1. व्यसनों को त्यागिए : अपने को पहचानिए, लेखक, डॉ. राजीव प्रचंडिया, जयकल्याणश्री मासिक पत्र, व्यसनमुक्ति अंक, दिसम्बर 96, पृष्ठ 2। 2. जाग्रत्तीव्र कषायकर्कशमनस्कारार्पितैर्दुष्कृतै। द्यूतादिपच्छ्रेपसः । चैतन्यं तिरयत्तमस्तरऽपि पुंसो व्यस्यति तद्धिदो व्यसनमित्याख्यांत्यत स्तद्मतः । कुर्वीतापि रसादि सिद्धि परतांतत्सोदरीं दूरगां ॥ - सागारधर्मामृत, पं. आशाधर, 3.18 3. व्यसनों को त्यागिए : अपने को पहचानिए, लेखक, डॉ. राजीव प्रचण्डिया, जयकल्याण श्री मासिक पत्र, व्यसनमुक्ति अंक, दिसम्बर 96, पृष्ठ 2। 4. जूयं मज्जं मंसं बेसा पारद्धि-चोर-परपारं । दुग्गइगमणस्सेदाणि हेउभूदाणि पावाणि ॥ - वसुनंदि श्रावकाचार, 59 5. सागारधर्मामृत, पं. आशाधर, 3.18 6. द्यूताद्धर्मतुजो बकस्य पिशितान्मद्याद्यदूनां विप चारो कामुकया शिवस्य चुरया यद्ब्रह्मदत्तस्य च । पापद्धर्या परदारतो दशमुखस्योच्चैरनुश्रूयते द्यूतादिव्यसनानि घोरदुरितान्युज्झेत्त दार्यस्त्रिधा ॥ 3.17 ॥ - सागारधर्मामृत 7. (क) वसुनंदि श्रावकाचार, 59 (ख) सागारधर्मामृत, अ. 3, श्लोक 17

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