Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 144
________________ स्त्री की उपेक्षा हानिकारक व्युत्पादयेत्तरां धर्मे पत्नीं प्रेम परं नयन् । सा हि मुग्धा विरुद्धा वा धर्माद् भ्रंशयतेतराम् ॥ 3.26 ॥ सा.ध. श्रावक को धर्म के विषय में उत्कृष्ट प्रेम उत्पन्न कराते हुए पत्नी को धर्म के सम्बन्ध में अधिक व्युत्पन्न करना चाहिये, क्योंकि यदि वह धर्म के विषय में मूढ़ हो या धर्म से द्वेष करती हो तो वह पति को धर्म से दूसरे की अपेक्षा अधिक भ्रष्ट करती है । अर्थात् यदि पत्नी धर्म से विद्वेष करनेवाली हुई तो वह समस्त परिवार की अपेक्षा गृहस्थ को धर्म से अधिक च्युत कर सकती है इसलिए अपना हित चाहनेवाले बुद्धिमान गृहस्थ को अपनी भार्या को धर्म मार्ग में विदुषी बनाना चाहिये । स्त्रीणां पत्युरुपेक्षैव परं वैरस्य कारणम् । तन्नोपेक्षेत जातु स्त्रीं वाञ्छन् लोकद्वये हितम् ॥ 2.27 ॥ सा.ध. पति के द्वारा की गई उपेक्षा ही स्त्रियों के अत्यधिक वैर का कारण है ( पति के द्वारा उपेक्षा करने पर स्त्रियों में उनके प्रति वैरभाव उत्पन्न होता है) इसलिए इस लोक और परलोक में सुख और सुख के कारणों के चाहनेवाले श्रावक को अपनी स्त्री की कभी भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । अनु. - पं. कैलाशचन्द शास्त्री

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