Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 142
________________ जैनविद्या - 22-23 133 इस पर भी प्रभावक ढंग से प्रकाश डाला है। पण्डितजी के अनुसार व्रतों की रक्षार्थ और तपश्चरण के वृद्धि हेतु प्रत्येक श्रावक को भोजन करते समय विवेक रखना पड़ता है तथा सावधानी भी बरतनी पड़ती है। श्रावक के भोजन सम्बन्धी जो अन्तराय हैं उनका भी विधिवत पालन करना पड़ता है । यथा 1 अतिप्रसंगमसितुं परिवर्धयितुं तपः । व्रतबीजवृतीर्भुक्तेरन्तरायान् गृही श्रयेत् ॥ 4.30 ॥ अन्तरायों के सन्दर्भ में चर्चा करते हुए पण्डितजी कहते हैं कि यदि श्रावक के भोजन के समय इनमें से कोई भी अन्तराय आता है तो श्रावक को निर्मल परिणति के साथ तुरन्त भोजन त्याग देना चाहिए। यथा दृष्ट्वाऽद्रचर्मा-स्थिसुरा-मांसासृक्पूयपूर्वकं । स्पृष्टवा रजस्वला शुष्क चर्मास्थिशुनकादिकम् ॥ 4.31 ॥ श्रुत्वाऽति कर्कशा कंद विड्वर प्रायनिः स्वनम् । भुक्त्वा नियमितं वस्तु भोज्येऽशक्यविवेचनैः ॥ 4.32 ॥ संसृष्टे सति जीवद्भिर्जीवैर्वा बहु भिमृतैः । इदं मांसमिति दृष्टसंकल्पे वाशनं त्यजेत् ॥ 4.33 ॥ अर्थात् - सूखे चमड़े, गीले चमड़े, हड्डी, मद्य, मांस, रुधिर, पीब, चर्बी, अंतड़ी, रजस्वला स्त्री आदि को देखकर या छूकर; कुत्ता - बिल्ली आदि के शब्द सुनकर ; 'मार दो - काट दो' आदि अत्यन्त कर्कश शब्द; हाय-हाय ऐसे आर्त्तनाद; परचक्र का आना; महामारी का फैलना आदि शब्दों के सुन लेने पर ; जिस वस्तु का त्याग कर दिया है उसके भोजन कर लेने पर ; जिन्हें भोजन में से अलग नहीं कर सकते ऐसे जीवित दो इन्द्रिय, त्रि- इन्द्रिय, चौ- इन्द्रिय जीवों के संसर्ग हो जाने पर अथवा मरे हुए जीवों के मिल जाने पर, खाने की वस्तु में यह मांस के समान है, यह रुधिर के समान है, यह हड्डी के समान है, यह सर्प के समान है, मन में ऐसा विकल्प हो जाने पर व्रती श्रावक को उस समय का आहार छोड़ देना चाहिए। दूसरे किसी समय वह भोजन कर सकता है। पण्डितजी आगे लिखते हैं कि भोजन के समय मौन धारण करना भी अहिंसाणुव्रत का शील है । इसलिए व्रती श्रावक को इष्ट भोजन की प्राप्ति के लिए अथवा भोजन की इच्छा प्रगट करने के लिए हुं हुं करना, खखारना, भौंह चलाना, मस्तक हिलाना या अँगुली चलाना आदि अपने अभिप्राय प्रकट करनेवाले संकेतों को छोड़कर तथा भोजन के पहले और पीछे क्रोध, दीनता आदि संक्लेशरूप परिणामों को छोड़कर इच्छा के निरोध करने रूप तपश्चरण और इन्द्रिय-संयम, प्राणि-संयम को बढ़ानेवाला मौनव्रत भोजन करते समय अवश्य धारण करना चाहिए अर्थात् मौन धारण किए पीछे भोजन की लालसा - इच्छा करने

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