Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 121
________________ प्रमादचर्या प्रमादचर्यां विफलं मानिलाग्न्यम्बुभूरूहाम्। खातव्याघातविध्यापसेकच्छेदादि नाचरेत्॥ 5.10 ॥ सा.ध. - बिना प्रयोजन भूमि खोदना, वायु को रोकना, अग्नि को बुझाना, पानी सींचना, वनस्पति का छेदन-भेदन करना आदि प्रमादचर्या है, ये नहीं करना चाहिए। अर्थात् बिना प्रयोजन के आग पर पानी डालकर उसे नहीं बुझाना चाहिए। व्यर्थ पानी नहीं बहाना चाहिए। पेड़ से फल-फूल-पत्ते आदि नहीं तोड़ना चाहिए। तद्वच्च न सरेयर्थं न परं सारयेन्नहि। जीवनजीवान् स्वीकुर्यान्मार्जारशुनकादिकान्॥ 5.11॥ सा.ध. - बिना प्रयोजन पृथ्वी खोदने की तरह बिना प्रयोजन हाथ-पैर आदि का हलन-चलन न स्वयं करें न दूसरे से करावें । प्राणियों का घात करनेवाले कुत्ता-बिल्ली आदि जन्तुओं को नहीं पालें। अनु. - पं. कैलाशचन्द शास्त्री

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