________________
जैनविद्या - 22-23
महाकवि तुलसीदास कहते हैं
दयाधर्म को मूल है पाप मूल अभिमान । तुलसी दया न छांडिये जब तक घट में प्राण ॥
उक्त आठ मूलगुणों को जीवनपर्यन्त धारण करनेवाला व्यक्ति ही जिनधर्म के श्रवण का अधिकारी है। सत्पात्र को दी हुई शिक्षा ही फलीभूत होती है। पं. आशाधरजी कहते हैं -
यावज्जीवमिति त्यक्त्वा महापापानि शुद्धधीः ।
जिनधर्मं श्रुतेर्योग्यः स्यात् कृतोपनय द्विजः ॥ 2.19 ॥
आचार्य अमृतचन्द्रसूरि के अनुसार भी आठ मूलगुण को धारण करनेवाला शुद्ध बुद्धिवाला व्यक्ति ही जिनधर्म का उपदेश सुनने योग्य है -
अष्टावनिष्टदुस्तर दुरितायतनान्यमूनि परिवर्ज्य । जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः ॥ 74 ॥
अतः श्रावक के लिए उक्त आठ मूलगुणों को धारण करना अनिवार्य है ।
111
1. आचार्य अमृतचन्द्रसूरि, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 69-70
2. वही, 1331
3. वही, 74 ।
-
अलका
35, इमामबाड़ा मुजफ्फरनगर