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जैनविद्या - 22-23
अप्रेल - 2001-2002
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कर्मकाण्डी पण्डितप्रवर आशाधर
- डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव
दिगम्बर परम्परा में कर्मकाण्ड की महिमा को मुखरित करनेवाले प्राचीन जैन आचार्यों में पं. आशाधर की द्वितीयता नहीं है। वे अपने युग के बहुश्रुत विद्वान थे। जैनाचार, अध्यात्म, दर्शन, काव्य, साहित्यशास्त्र, कोश, राजनीति, कामशास्त्र, कर्मकाण्ड, आयुर्वेद आदि विभिन्न विषयों में इन्हें पारगामिता प्राप्त थी। वे कर्मयोगी गृहस्थ थे।
माण्डलगढ़ (मेवाड़) के मूलनिवासी पं. आशाधर का विक्रम की तेरहवीं शती के अन्त में ज्योतिर्मय लोकावतरण हुआ था। आचार्य नेमिचन्द्र शास्त्री की कालोत्तीर्ण ऐतिहासिक कृति 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' से यह सूचना प्राप्त होती है कि पं. आशाधर के समय मेवाड़ पर मुगल बादशाह शहाबुद्दीन गोरी का आक्रमण हुआ था, जिससे त्रस्त होकर उन्होंने मेवाड़ छोड़ दिया था और वे सपरिवार मालवा की प्राचीन राजधानी धारा नगरी में जाकर बस गये थे। वे बघेरवाल जाति के श्रावक थे। उन्होंने धारा नगरी में प्रसिद्ध विद्यागुरु पं. महावीरजी से न्याय और व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया था।
पं. आशाधर यद्यपि स्वयं गृहस्थ थे तथापि उनकी प्रतिष्ठा एक तपोनिष्ठ साधु से कम नहीं थी। बड़े-बड़े मुनियों और भट्टारकों ने इनकी शिष्यता स्वीकार की थी। उनके समय