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जैनविद्या - 22-23
विद्याध्ययन करने में भी कोई संकोच नहीं किया है। साथ ही मुनि उदयसेन ने उन्हें 'नयविश्वचक्षु' तथा 'कलिकालिदास' और मदनकीर्ति यतिपति ने 'प्रज्ञापुंज' कहकर अभिनन्दित किया था। वादीन्द्र विशालकीर्ति को उन्होंने न्यायशास्त्र और भट्टारकदेव विनयचन्द्र को धर्मशास्त्र पढ़ाया था । वस्तुतः पण्डित आशाधरजी अपने समय के अभिवंदनीय प्रज्ञा पुरुषोत्तम थे ।
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ऋषितुल्य मनीषी पंडित आशाधर के पिताश्री का नाम सल्लक्षण एवं मातुश्री का नाम श्रीरत्नी था। उन्होंने बघेरवाल जाति का मुख उज्ज्वल किया था। 'सागारधर्मामृत' के अन्त में वे लिखते हैं
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व्याघ्रेरवालवरवंश सरोजहंसः काव्यामृतौघरसपान सुतप्त गात्रः । सल्लक्षणस्य तनयो नय विश्वचक्षुराशाधरो विजयतां कलिकालिदासः ॥ सपादलक्ष देश में मंडलकर (मेवाड़) नाम के नगर में पंडित आशाधर का जन्म हुआ था.
श्रीमानास्ति सपादलक्ष विषयः शाकंभरीभूषणस्तत्र श्री रतिधाम मण्डलकरं नामास्ति दुर्ग महत् । श्री रल्यामुदपादि तत्र विमल व्याघ्रेरवालन्वयात् श्री सल्लक्षणतो जिनेन्द्र समय श्रद्धालुराशाधारः ॥
सपादलक्ष देश को भाषा में सवालख कहते हैं । प्राचीनकाल में 'कमाऊँ के' आसपास के देश को भी सपादलक्ष कहते थे । नागौर (जोधपुर) के निकट का प्रदेश सवालखे के नाम से प्रसिद्ध है । इस देश में पहले चाहमान (चौहान) राजाओं का राज्य था । फिर सांभर और अजमेर के चौहान राजाओं का सारा देश सपादलक्ष कहलाने लगा था और उसके सम्बन्ध में चौहान राजाओं के लिए 'संपादलक्षीय नृपतिभूपति' आदि शब्द लिखे जाने लगे थे। पंडित आशाधर की स्त्री सरस्वती से छाहड़ नाम का एक पुत्र था जिसने धारा के तत्कालीन महाराजाधिराज अर्जुनदेव को अपने गुणों से मोहित कर रखा था। पंडितजी ने स्वयं लिखा है -
सरस्वत्यामिवात्मानं सरस्वत्यामजीजनत् । कः पुत्रं छाहडं गुण्यं रंजितार्जुनभूपतिम् ॥
अर्थात् जिस तरह सरस्वती के (शारदा के) विषय में मैंने अपने आपको उत्पन्न किया, उसी तरह से अपनी सरस्वती नाम की भार्या के गर्भ से अपने अतिशय गुणवान पुत्र छाहड़ को उत्पन्न किया। छाहड़ सरीखे गुणवान पुत्र को पाने का एक प्रकार से उन्हें अभिमान