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जैनविद्या - 22-23 अधिकांश छपा दिया था। उसी के आधार से माणिकचन्द ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित सागारधर्मामृत सटीक में भी उसकी अधिकांश टिप्पणियाँ दे दी गई थीं। उसके बाद मालूम हुआ कि उक्त कनड़ी प्रति जलकर नष्ट हो गई। 4. राजीमती विप्रलम्भ ___ यह एक खण्डकाव्य है और स्वोपज्ञटीका सहित है। इसमें राजीमती के नेमिनाथवियोग का कथानक है।
5. अध्यात्म रहस्य __ योगाभ्यास का आरम्भ करनेवालों के लिए यह बहुत ही सुगम योगशास्त्र का ग्रन्थ है। इसे उन्होंने अपने पिता के आदेश से लिखा था। योग से सम्बद्ध रहने के कारण इसका दूसरा नाम योगोद्दीपन भी है। कवि ने लिखा है -
आदेशात् पितुरध्यात्म-रहस्यं नाम यो व्यघात्
शास्त्रं प्रसन्न गम्भीर-प्रियमारब्धर्यागिनाम्। अन्तिम प्रशस्ति इस प्रकार है – 'इत्याशाधर विरचित धर्मामृतनाम्नि सूक्ति-संग्रहे योगोद्दीपनो नामाष्टादशोऽध्यायः।' इस ग्रन्थ में बहत्तर पद्य हैं और स्वात्मा, शुद्धात्मा, श्रुतिमति, ध्याति, दृष्टि और सद्गुरु के लक्षणादि का प्रतिपादन किया है। इसके पश्चात् रत्नत्रयादि दूसरे विषय विवेचित हैं। इस 'अध्यात्मरहस्य' में गुण-दोष, विचार स्मरण आदि की शक्ति से सम्पन्न भावमन और द्रव्यमन का बड़ा ही विशद विवेचन किया है। योगाभ्यासियों और अध्यात्मप्रेमियों के लिए यह कृति उपादेय है। 6. मूलाराधना टीका ___ यह शिवार्य की प्राकृत आराधना की टीका है जो बहुत पहले सोलापुर से अपराजितसूरि और अमितगति की टीकाओं के साथ प्रकाशित हो चुकी है। 7. इष्टोपदेश टीका ___ आचार्य पूज्यपाद के सुप्रसिद्ध ग्रंथ की यह टीका माणिकचन्द्र जैन ग्रंथमाला के तत्वानुशासन संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है। 8. भूपाल चतुर्विंशतिका टीका
भूपाल कवि के प्रसिद्ध स्तोत्र की यह टीका है। 9. आराधनासार टीका
यह आचार्य देवसेन के आराधनासार नामक प्राकृत ग्रंथ की टीका है।