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जैनविद्या - 22-23 विशेषता रही है कि वह काव्य शक्ति के द्वारा नीरस विषय को भी सरस बनाकर प्रस्तुत करते हैं । निश्चय और व्यवहार का निरूपण वे जिस सशक्त शैली में करते हैं, उससे उनका गम्भीर पाण्डित्य तो झलकता ही है, साथ ही विषय पर पूर्ण अधिकार भी उजागर होता है। प्रज्ञापुरुषोत्तम पण्डित प्रवर आशाधर अध्यात्मजगत के एक दिव्य नक्षत्र थे जिनकी दीप्रप्रभा से आज भी आलोक विकीर्ण है।
- मंगलकलश 394, सर्वोदयनगर, आगरा रोड
अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)