Book Title: Jain Vidya 22 23
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 50
________________ जैनविद्या - 22-23 अप्रेल - 2001-2002 41 प्रज्ञापुरुषोत्तम पण्डित आशाधर का व्यक्तित्व और कर्तृत्व - डॉ. आदित्य प्रचण्डिया जैन दिगम्बर आम्नाय के बहुश्रुत, प्रतिभावंत जैनधर्म के निरूपमेय उद्योतक पण्डितप्रवर आशाधरजी ने न्याय, व्याकरण, काव्य, अलंकार, शब्दकोश, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र, वैद्यक आदि विविध विषयों पर साधिकार, अस्खलित लेखनी चलाई तथा अनेक मनीषियों ने बहुत समय तक उनके निकट अध्ययन किया। उनका वैदुष्य जैन शास्त्रों तक ही सीमित नहीं था, इतर शास्त्रों में भी उनकी अबाधगति थी। अतएव उनकी रचनाओं में यथास्थान सभी शास्त्रों के प्रचुर उद्धरण दृष्टिगत हैं और इसीकारण अष्टांगहृदय, काव्यालंकार, अमरकोश जैसे ग्रंथों पर टीका लिखने में पण्डित आशाधर प्रवृत्त हुए। यदि वे मात्र जैनधर्म के ही मनीषी होते तो मालवनरेश अर्जुनवर्मा के गुरु बालसरस्वती महाकवि मदन उनके निकट काव्यशास्त्र का अध्ययन न करते और विन्ध्यवर्मा के सन्धि-विग्रह मंत्री कवीश विल्हण उनकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा न करते। विभिन्न आचार्यों और विद्वानों के मतभेदों का सामञ्जस्य स्थापित करने के लिए उन्होंने जो प्रयत्न किया है वह अपूर्व है। पण्डित आशाधर सद्गृहस्थ थे, मुनि नहीं। कालान्तर में वे संसार से उपरत अवश्य हो गए थे, परन्तु उसे छोड़ा नहीं था। परवर्ती ग्रंथकारों ने उन्हें 'सूरि' और 'आचार्यकल्प' कहकर स्मरण किया है और तत्कालीन भट्टारकों और मुनियों ने तो उनके निकट

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