________________
24
जैनविद्या - 22-23 पण्डित जाजाक की प्रेरणा से उस पर 'पञ्जिका' रची गई जिसमें पुराणों में तथा अन्यत्र प्राप्त कथारत्नों को संक्षेप में अनुस्यूत किया गया। यह स्मृतिशास्त्र टीका सहित माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुआ है।
13. नित्यमहोद्योत - मोहरूपी अन्धकार को हरने के लिए रवि-समान अर्हत् देव के महाभिषेक और उनकी अर्चना-विधि बतानेवाला जिनेन्द्रदेव के स्नान-शास्त्र स्वरूप रचित यह ग्रन्थ श्रुतसागरी टीका के साथ प्रकाशित हुआ है।
14. रत्नत्रयविधान शास्त्र में रत्नत्रय विधान की पूजा का माहात्म्य वर्णित है और यह अभी अप्रकाशित है।
15. राजीमती विप्रलम्भ - नेमिनाथ के दीक्षा ले लेने पर राजुलमती की मनोवेदना को व्यक्त करनेवाला, टीकासहित रचित, यह खण्डकाव्य अनुपलब्ध है। ___ 16. अध्यात्म रहस्य शास्त्र - अपने पिता सल्लक्षण के आदेश से योगियों को प्रिय लगनेवाले प्रसन्न-गंभीर-विषयक इस शास्त्र का आशाधर ने प्रणयन किया था। यह अनुपलब्ध है। ___ 17. भूपाल चतुर्विंशति टीका - लगभग 975 ई. में गोल्लाचार्य कवि भूपाल ने 24 तीर्थंकरों की स्तुति में भूपाल चतुर्विंशति स्तोत्र' की रचना की थी, जिसकी पाँच प्रमुख जैन स्तोत्रों में गणना है। उक्त स्तोत्र पर विनयचन्द्र के अनुरोध पर आशाधर ने यह टीका रची थी, जो अभी अप्रकाशित है। ___ 18. आराधनासार टीका - यह अनुपलब्ध है। आशाधर के शिष्य, प्रशंसक, प्रेरक व सहयोगी
'जिनयज्ञकल्प सटीक', 'सागार धर्मामृत टीका' और 'अनगार धर्मामृत टीका' की अन्त्य प्रशस्ति के श्लोक 9 में लिखा है -
यो द्राग्व्याकरणाब्धिपारमनयच्छु श्रूषमाणान्न कान् षटतर्कीपरमास्त्रमाप्य न यतः प्रत्यर्थिनः केऽक्षिपन्। चेरुः केऽस्खलितं न येन जिनवाग्दीपं पथि ग्राहिताः
पीत्वा काव्यसुधां यतश्च रसिकेष्वापुः प्रतिष्ठां न के॥ इसका भावार्थ है कि शुश्रूषा (सेवा करनेवाले शिष्यों में से ऐसे कौन हैं जिन्हें आशाधर ने व्याकरणरूपी समुद्र के पार शीघ्र ही न पहुँचा दिया हो तथा ऐसे कौन शिष्य हैं जिन्होंने उनसे षड्दर्शन रूपी परमशस्त्र (षड्दर्शन का ज्ञान) प्राप्त कर अपने प्रतिवादियों को न जीता हो, और ऐसे कौन हैं जो उनसे निर्मल जिनवाणी रूपी दीपक प्राप्त कर मोक्ष-मार्ग