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जैनविद्या - 22-23
23 4. अष्टाङ्गहृदयोद्योत निबन्धम् - आयुर्वेदविदों के लिए इष्ट, वाग्भट द्वारा रचित वैद्यक ग्रन्थ 'अष्टाङ्गहृदय' अपरनाम वाग्भटसंहिता' की व्याख्या करनेवाली यह टीका अब अनुपलब्ध है, किन्तु इसके उद्धरण 'सागार धर्मामृत' में स्थान-स्थान पर पाये जाते हैं। ____5. मूलाराधना निबन्ध - प्रथम शती ईस्वी के पूर्वार्द्ध में हुए शिवार्य की 'मूल आराधना' अपरनाम 'भगवती आराधना' की टीका स्वरूप यह कृति शोलापुर से प्रकाशित हुई है। ___6. इष्टोपदेश टीका - लगभग 464-524 ई. में हुए देवनन्दि पूज्यपाद कृत 'इष्टोपदेश' की यह टीका आशाधर ने विनयचन्द्र मुनि की प्रेरणा से लिखी थी। यह माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुई है। इससे उद्धरण 'सागार धर्मामृत टीका' में दिये गये हैं।
7. अमरकोष निबन्ध - अमरसिंह द्वारा रचित संस्कृत शब्दकोश 'अमरकोश' की यह टीका भी सम्प्रति अनुपलब्ध है।
8. क्रियाकलाप - इसकी प्रति मुम्बई के पन्नालाल सरस्वती भवन में उपलब्ध है। ____9. रौद्रट काव्यालंकार टीका - संस्कृत में भद्र रुद्रट के 'काव्यालंकार' ग्रन्थ की यह टीका अब अनुपलब्ध है। इससे नामनिर्देशपूर्वक उद्धरण 'अनगार धर्मामृत टीका' में दिये गये हैं। ___10. जिन-सहस्रनाम-स्तवन टीका - 9वीं शती ईस्वी में हुए जिनसेनस्वामि के 'श्री जिन-सहस्रनाम-स्तोत्र' की आशाधर कृत यह टीका श्रुतसागर सूरि की टीका के साथ भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुई है।
11. जिनयज्ञकल्प सटीक - प्राचीन जिन-प्रतिष्ठा शास्त्रों को देखकर आम्नाय विच्छेद को बचाने हेतु युगानुरूप इस प्रतिष्ठा शास्त्र की टीका सहित रचना आशाधर ने 'सर्वज्ञार्चनपात्रदान-समयोद्योत प्रतिष्ठाग्रणी पापा साधु (साहू) के अनुरोध पर की थी और इसका अनेक अर्हत् प्रतिष्ठा कराने के लिए ख्यात खाण्डिल्यवंशी (खण्डेलवाल) केल्हण आदि ने सूक्त अनुराग से पढ़कर प्रचार किया तथा केल्हण ने पढ़ने हेतु इसकी प्रथम पुस्तक (प्रथम प्रतिलिपि) लिखी थी। सन् 1917 में जैन ग्रन्थ उद्धारक कार्यालय से 'प्रतिष्ठासारोद्धार' नाम से हिन्दी टीका सहित यह प्रकाशित हो चुका है।
12. त्रिषष्टि स्मृतिशास्त्र - जिनसेनस्वामि और गुणभद्रकृत 'महापुराण' की कथा के सार स्वरूप 63 शलाका पुरुषों (24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण और 9 बलभद्र) का वर्णन करनेवाले इस शास्त्र की पहले टीका सहित रचना हुई। तदनन्तर