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जैनविद्या - 22-23
19 इनसे विदित होता है कि सपादलक्षविषय (सवालख प्रदेश - नागौर-जोधपुर के आसपास का वह प्रदेश, जहाँ चौहान राजाओं का राज्य था, के अन्तर्गत श्रीसम्पन्न आभूषणरूप शाकम्भरी में अवस्थित श्री (लक्ष्मी) और रति के धाम मण्डलकर (मांडलगढ़) के महान दुर्ग में विमल व्याघेरवाल अन्वय (बघेरवाल वंश) के श्री सल्लक्षण से श्रीरत्नी ने जिनेन्द्र के धर्म में श्रद्धा रखनेवाले आशाधर को जन्म दिया था।
और उसने जिस प्रकार अपने आप को सरस्वती (वाग्देवी) में प्रकट कर सारस्वत (विद्वान) बनाया उसी प्रकार अपनी पत्नी सरस्वती से छाहड़ नामक गुणी पुत्र उत्पन्न किया जो अर्जुन (अर्जुन वर्मा) नामक राजा को रंजित (प्रसन्न) करनेवाला था अर्थात् उसका प्रिय पात्र था।
प्रशस्ति श्लोक 5 में इनके सपादलक्ष विषय से मालवमण्डल आने का उल्लेख निम्नवत है -
म्लेच्छेशेन सपादलक्षविषये व्याप्ते सुवृत्तक्षतित्रासाद्विन्ध्यनरेन्द्रदोः परिमलस्फूर्जत्रिवर्गोजसि। प्राप्तो मालवमण्डले बहुपरीवारः पुरीमावसन्
यो धारामपठज्जिनप्रमितिवाक्शास्त्रे महावीरतः॥ अर्थात् सपादलक्ष विषय पर म्लेच्छ राजा द्वारा आक्रमण किये जाने और वहाँ काफी क्षति पहुँचाये जाने पर उसके त्रास से राजा विन्ध्यवर्मा सपरिवार मालवमण्डल में आ बसे।
और वहाँ धारा नगरी में आशाधर ने महावीर नामक पण्डित से जैन शास्त्रों का अध्ययन किया। अपनी 'धर्मामृत' की 'भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका' में आशाधर ने 'म्लेच्छेशेन' का अर्थ साहिबुदिनतुरुष्कराजेन' दिया है । तुर्कराज मोहम्मद शाहबुद्दीन ग़ोरी ने 1193 ईस्वी (विक्रम संवत् 1250) में तराइन के दूसरे युद्ध में अंजमेर-दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया था। अत: यह अनुमान किया जाता है कि मोहम्मद ग़ोरी ने या तो उस युद्ध के उपरान्त अथवा उसके आसपास सपादलक्ष पर आक्रमण किया होगा और वहाँ का राजा विन्ध्यवर्मा रहा होगा। इस श्लोक से यह भी अनुमानित होता है कि आशाधर के पिता सल्लक्षण कदाचित् उक्त राजा की सेवा में रहे और उसके साथ-साथ सपादलक्ष से आकर मालवमण्डल की धारा नगरी में आ बसे। ___ प्रशस्ति श्लोक 8, जो निम्नवत है, से विदित होता है कि आशाधर राजा अर्जुनवर्मा के राज्यकाल में जिन धर्म के उदय हेतु धारा नगरी छोड़ श्रावक संकुल नलकच्छपुर में आ बसे थे -