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जैनविद्या - 22-23 श्रीमदर्जुनभूपालराज्ये श्रावकसंकुले।
जिनधर्मोदयार्थे यो नलकच्छपुरेऽवसत्॥ 'अनगार धर्मामृत टीका' की प्रशस्ति के श्लोक 28 में उन्होंने अपना परिचय पण्डित आशाधर' के रूप में दिया है और अपने 'भव्यजनकंठाभरण' के श्लोक 236 में कवि अर्हददास ने इनका उल्लेख 'आशाधर सूरि' के रूप में किया है। इनके पिता सल्लक्षण कदाचित् राजा विन्ध्यवर्मा की सेवा में रहे और इनका पुत्र छाहड़ राजा अर्जुन वर्मा की, किन्तु आशाधर स्वयं किस प्रकार जीविकोपार्जन करते थे, यह स्पष्ट नहीं है। आशाधर की कृतियाँ
वि.सं. 1285 (1228 ई.) में निबद्ध 'जिनयज्ञकल्प सटीक' की प्रशस्ति में उसके अतिरिक्त जिन अन्य पूर्वरचित कृतियों का उल्लेख है, वे हैं - 'प्रमेयरत्नाकर', 'भरतेश्वराभ्युदयकाव्य', 'धर्मामृत शास्त्र', 'अष्टाङ्गहृदयोद्योत निबन्ध', 'मूलाराधना निबन्ध', 'इष्टोपदेश निबन्ध', 'अमरकोष निबन्ध', 'क्रियाकलाप', 'रौद्रट के काव्यालंकार पर निबन्ध', 'सहस्रनाम स्तवन निबन्ध सहित', 'त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र निबन्धयुक्त', 'नित्यमहोद्योत' और 'रत्नत्रयविधान शास्त्र'। 'निबन्ध' शब्द से आशय टीका से है। __ वि.सं. 1292 (1235 ई.) में उन्होंने उपर्युक्त 'त्रिषष्टिस्मृति शास्त्र' की पञ्जिका, वि.सं. 1296 (1239 ई.) में 'धर्मामृत शास्त्र' के 'सागार धर्म' विषयक अध्यायों की रम्य टीका और वि.सं. 1300 (1243 ई.) में 'धर्मामृत' में समाहित दुर्बोध यतिधर्म (अनगार धर्म) की टीका रची थी। 'अनगार धर्मामृत टीका' की प्रशस्ति में दो अन्य पूर्वरचित कृतियों के नाम उल्लिखित हैं, वे हैं - 'राजीमतीविप्रलम्भ खण्ड काव्य' और 'अध्यात्म रहस्य शास्त्र'। ऐसा प्रतीत होता है इन कृतियों की रचना वि.सं. 1296 के उपरान्त हुई होगी, क्योंकि इनका उल्लेख 'जिनयज्ञकल्प सटीक', 'त्रिषष्टिस्मृति शास्त्र पञ्जिका' और 'सागार धर्मामृत टीका' में नहीं है।
इनके अतिरिक्त दो अन्य कृतियों - 'भूपाल-चतुर्विंशति-टीका' और 'आराधनासार' का उल्लेख पं. नाथूराम प्रेमी, पं. परमानन्द शास्त्री, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री और डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य की पुस्तकों में है। प्रेमीजी के 'जैन साहित्य और इतिहास' में आशाधर विषयक लेख में उक्त ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ उनकी टिप्पणियों के साथ पृष्ठ 353-358 पर उदधृत हैं, किन्तु उनमें इन दोनों कृतियों के नाम दृष्टिगत नहीं होते। संभव है इनकी रचना वि.सं. 1300 में रचित 'अनगार धर्मामृत टीका' के उपरान्त हुई हो। संयोग से वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली से प्रकाशित 'जैनग्रन्थप्रशस्ति-संग्रह' भाग प्रथम में पृष्ठ 8-9 पर 'भूपालचतुर्विंशति-टीका' की प्रशस्ति का आदि और अन्त भाग उपलब्ध