Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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xliv... शोध प्रबन्ध सार
कहने को जैन धर्म एक परम्परा है परन्तु जैसे वृक्ष की अनेक शाखाउपशाखाएँ होती है वैसे ही जैन परम्परा में श्वेताम्बर, दिगम्बर तदनन्तर उनमें भी अनेक भेद रेखाएँ हैं।
इस शोध कार्य में मुख्य रूप से जैन परम्परावर्ती श्वेताम्बर, दिगम्बर, तेरापंथी, स्थानकवासी, पायच्छंदगच्छ, अचलगच्छ आदि की सामाचारियों में प्रचलित विधियों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। इसी के साथ जहाँ-जहाँ विधि-विधानों में भेद परिलक्षित होता है उनकी चर्चा भी की है।
यदि अपने चिंतन को थोड़ी विराटता दें तो ज्ञात होता है कि जैन धर्म यह जन धर्म है। यदि वर्तमान भारतीय परम्परा की बात करें तो अनेक धर्मों का जीवंत स्वरूप यहाँ पल्लवित हो रहा है। प्रचलित धर्म सम्प्रदायों में भी हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराएँ जैन धर्म के अत्यन्त निकटवर्ती प्रतीत होती हैं। यह तीनों भारत की प्राच्य परम्पराएँ मानी जाती हैं। कई नैतिक मूल्यों एवं आचार संहिताओं को लेकर समरूपता है तो कई सैद्धान्तिक नियमों में मतभेद भी। कई क्रियाओं में मात्र नाम की समरूपता है तो कुछ क्रियाओं में किंच साम्य और किंच वैषम्य है।
सुस्पष्ट है कि जैन, हिन्दू एवं बौद्ध यह तीनों परम्पराएँ एक-दूसरे से प्रभावित होने के साथ-साथ भारतीय दर्शन के तीन भिन्न धाराओं का प्रतीक भी है। इनके द्वारा भारतीय संस्कृति का समुचित स्वरूप समुपस्थित हो जाता है इसलिए शोध के अन्तर्गत इन तीन परम्पराओं की विशेष तुलना की है।
प्रत्येक धर्म एवं संस्कृति में देश-काल परिस्थिति के अनुसार कई नवीन मूल्यों का समावेश एवं प्राच्य विधानों में परिवर्तन होता है। विविध परिप्रेक्ष्यों में उन मूल्यों का भिन्न-भिन्न प्रभाव होता है। जैसे कि किन स्थितियों में कौनसे सिद्धान्त की क्या भूमिका है? कौन सा विधान हमारी पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय संरचना को किस तरह प्रभावित करता है? वर्तमान शिक्षा पद्धति में हमारे विधि-विधान किस तरह सहयोगी बन सकते हैं? प्रबंधन (Management) के क्षेत्र में इन विधियों का क्या मूल्य हो सकता है?
वर्तमान संदर्भो में इन सभी की समीक्षा होना आवश्यक है ताकि आधुनिक जीवन शैली में उन सभी विधि-विधानों का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जा सके।
इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर जैन विधि-विधानों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन किया हैं।