Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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56... शोध प्रबन्ध सार
तो कई परिवर्तन नजर आते हैं। उनमें कुछ तो गीतार्थ मुनियों द्वारा देश-कालपरिस्थिति के आधार पर किए गए तो कुछ बदलाव शिथिलता एवं मन के ढीलेपन के कारण आए क्योंकि जो शारीरिक क्षमता, मानसिक स्थिरता एवं चारीत्रिक दृढ़ता उस समय में थी वह आज प्रायः कठिन प्रतीत होती है।
एक तथ्य यह भी है कि श्रावक वर्ग के आचारों में भी कालक्रम अनुसार अनेक बदलाव आए हैं जिसका प्रभाव प्रकारांतर से श्रमण जीवन पर भी स्वाभाविक है क्योंकि श्रमण भी तो उन्हीं घरों से निकलते हैं, उन्हीं के द्वारा प्रदत्त भोजन करते है एवं उन्हीं के बीच रहते हैं अत: जैसा बाह्य वातावरण होगा, सामाजिक संरचना होगी, वैसा ही प्रभाव श्रमण जीवन पर परिलक्षित होगा।
वर्तमान जीवन शैली के कारण भी कई प्रकार के अपवाद एवं शिथिलताएँ साधुओं को अपनानी पड़ी। जैसे कि आज का खान-पान और पहनावा जिस प्रकार का हो चुका है उसमें मुनि को निर्दोष वस्त्र एवं शुद्ध आहार मिलना बहुत कठिन हो गया है। इन परिस्थितियों में यदि किसी प्रकार के Quality आदि की प्रमुखता न हो तो भी उन्मार्ग प्रवृत्ति से बचा जा सकता है।
संयम जीवन की मर्यादाएँ वर्तमान में कितनी प्रासंगिक है? कई लोग शंका करते हैं कि जैन श्रमण की जो आचार संहिता आगम ग्रन्थों में चर्चित है वह पूर्व काल की अपेक्षा से है। आज की जीवन पद्धति और प्राचीन जीवन पद्धति में रात-दिन का अंतर आ चुका है। पूर्व कालिक जीवन शैली में लोग संयुक्त परिवारों में रहते थे। उनका जीवन पूर्ण रूपेण प्रकृति पर निर्भर था। इस कारण मुनियों को भी आवश्यक सामग्री सहज रूप से उपलब्ध हो जाती थी। चाहे पात्र हो, वस्त्र हो, आहार व्यवस्था या निहार व्यवस्था सभी के लिए उपयुक्त स्थान प्राप्त होते थे। लोगों के मन में साधु-साध्वियों के प्रति बहुमान भाव भी अधिक होते थे। साधु-संतों को रहने के लिए भी स्थान प्राप्त हो जाता था। परंतु आजकल परिस्थितियाँ एकदम विपरीत है। जो साधु अपने निमित्त से एक जीव की भी हिंसा नहीं करवाते उन साधुओं के लिए आज बड़े-बड़े उपाश्रय बनने लगे हैं। नारियल और तुम्बी के पात्रों का स्थान Specially निर्माण होने वाले पात्रों ने ले लिया है और तो और गोचरी की बढ़ती असुविधा में Tiffin और चौकों की व्यवस्थाएँ भी शुरू हो गई है। बड़े-बड़े शहरों में