Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 220
________________ 166...शोध प्रबन्ध सार विशिष्ट रूप से आचरित की जाती है। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एवं जैन विधि-विधानों का शोध करते हुए हिन्दू परम्परा में प्रयुक्त मुद्राओं पर भी अध्ययन किया। उसका सार रूप खण्ड-18 के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है। मुद्रा योग सम्बन्धी यह चतुर्थ उपखण्ड सात अध्यायों में वर्गीकृत है। इन सात अध्यायों के माध्यम से हिन्दू परम्परा में उपयोगी प्रचलित मुद्राओं की उपादेयता साधना एवं चिकित्सा के क्षेत्र में सिद्ध करने का प्रयास किया है। प्रथम अध्याय में मुद्रा प्रयोग के द्वारा शरीर के सूक्ष्म शक्ति स्थानों पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसकी चर्चा की गई है। यह वर्णन खण्ड-16 के प्रथम अध्याय के समान ही है। द्वितीय अध्याय हिन्दू परम्परा सम्बन्धी विविध कार्यों हेतु प्रयुक्त मुद्राओं के प्रासंगिक स्वरूप का वर्णन करता है। इस अध्याय में देवी-देवताओं द्वारा धारण की गई, उन्हें प्रसन्न करने के लिए धारण की जाने वाली एवं अन्य धर्म एवं सामान्य कार्य में उपयोगी मुद्राओं का सचित्र निरूपण किया है। इसी के साथ मुद्रा निर्माण विधि एवं उसके द्वारा प्रभावित सप्त चक्र आदि भी विशेषज्ञों द्वारा किए गए अनुसंधान के आधार पर बताए गए हैं। यह अध्याय विविध मुद्राओं की उपयोगिता एवं अर्थवत्ता को सिद्ध करता है। तृतीय अध्याय में हिन्दू धर्म के प्राचीन एवं प्रचलित ग्रन्थों में उल्लेखित मुद्राओं का सचित्र स्वरूप वर्णन किया है। इन मुद्राओं का प्रयोग विविध साधनाओं एवं देवी-देवताओं के स्वरूप आदि को अभिव्यक्त करने हेतु किया जाता है। ___ यह अध्याय पूर्वकालीन ग्रन्थों में वर्णित मुद्राओं के अस्तिव के माध्यम से मुद्रा विज्ञान की प्राच्यता एवं हिन्दू साधना पद्धति में उसकी आवश्यकता को सुसिद्ध करता है। गायत्री जाप साधना हिन्दू धर्म की एक अति प्रचलित क्रिया साधना है। इसका प्रयोग आध्यात्मिक समृद्धि एवं लौकिक सिद्धियों की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इसी मुख्यता को प्रदर्शित करने हेतु चौथे अध्याय में गायत्री जाप साधना एवं संध्या कर्म आदि में उपयोगी मुद्राओं की रहस्यमयी विधियों का उल्लेख किया गया है। ___सामान्यतः इस अध्याय में गायत्री जाप सम्बन्धी 32 मुद्राओं के निर्माण की विधि, चित्र एवं उनकी साधना द्वारा शारीरिक स्तर पर प्राप्त परिणामों की चर्चा की गई है।

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