Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 218
________________ 164...शोध प्रबन्ध सार इस खण्ड के तृतीय अध्याय में 15वीं शती के दिग्गजाचार्य श्री वर्धमानसूरि द्वारा उल्लेखित मुद्राओं का रहस्यपूर्ण विश्लेषण किया है। विधिविधान सम्बन्धी रचनाओं के परिप्रेक्ष्य में आचार्य वर्धमानसूरि का क्रांतिकारी योगदान रहा है। उन्होंने पूर्व ग्रन्थों में उल्लेखित मुद्राओं का विस्तृत विवेचन करते हए विधि-विधान में उपयोगी मुद्राओं का भी सविस्तार उल्लेख किया है। इस अध्याय में आचारदिनकर निर्दिष्ट 23 मुद्राओं का रहस्योद्घाटक सचित्र वर्णन किया है। इस विवरण के माध्यम से मुद्रा प्रयोग के लौकिक एवं लोकोत्तर परिणामों की अनुभूति हो सके एवं विधि-विधानों के प्रति व्याप्त भ्रान्त मान्यताएँ समाप्त हो सके यही प्रयास किया है। __चतुर्थ अध्याय में प्राचीन-अर्वाचीन ग्रन्थों में उपलब्ध शाताधिक मुद्राओं का प्रभावी वर्णन किया गया है। इसमें मुख्य रूप से मुद्रा विधि एवं मुद्रा प्रकरण इन द्वय ग्रन्थों में प्राप्त मुद्राओं का सस्वरूप चित्रांकित विस्तृत वर्णन है। प्रतिष्ठा, पूजन, महापूजन, दीक्षा आदि विविध धार्मिक प्रसंगों में भिन्न-भिन्न भावों की अभिव्यक्ति हेतु इन मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है। इस अध्याय लेखन के पीछे मुख्य रूप से विविध जैन मुद्राओं का स्वरूप अभिव्यक्त कर उन्हें जन उपयोगी एवं प्रचलित करने का लक्ष्य रहा हुआ है। इन्हीं प्रयासों के माध्यम से जैन साधना पद्धति जन साधना पद्धति बन सकती ___ पंचम अध्याय उपसंहार के रूप में निरुपित है। इस अध्याय में मुद्राओं का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करते हुए रोगोपचार उपयोगी जैन मुद्राओं का उल्लेख किया गया है। मनुष्य शरीर रोगों का पिण्ड है। साढ़े तीन करोड़ रोम-राजी में प्रत्येक रोम में पौने दो रोग छिपे हुए हैं। कब, कौनसा रोग किस निमित्त से प्रकट हो जाए कोई नहीं जानता। धर्माचार्यों ने इस सत्य को अनुभूत किया एवं विविध साधनात्मक प्रयोग करके उन समस्याओं के समाधान करने का भी प्रयत्न किया। पाँचवें अध्याय में मुद्रा रूपी योग साधना के माध्यम से दैहिक स्वच्छता, वैचारिक ऊर्ध्वता एवं मानसिक शांतता पाने का प्रयास किया है। ___ यह खण्ड विधि-विधान और क्रियाकांड को निरर्थक एवं अप्रासंगिक मानने वाले युवा वर्ग के लिए Alarm clock के समान जागने का सूचक होगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236