Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 229
________________ शोध प्रबन्ध सार ... 175 साधनाओं का लाभ उठाकर हम भी अपने जीवन को रहस्यमयी सिद्धियों से परिपूर्ण बना सकते हैं। इस शोध कार्य के अंतिम खंड को पूर्णरूपेण आधुनिक युग की अपेक्षा से प्रस्तुत किया गया है। 21 शोध खण्डों में गुम्फित इस शोध कार्य का 21 वाँ खण्ड वर्तमान में चिकित्सा हेतु उपयोग में ली जाने वाली मुद्राओं को नए रूप प्रस्तुत करता है। में खण्ड - 21 आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? आज समाज के सामने स्वास्थ्य का प्रश्न प्रमुख रूप से उपस्थित है। यदि विश्व समाज के स्वास्थ्य का बारीकी से अवलोकन किया जाए तो ज्ञात होता है कि अधिकांश व्यक्ति स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत कमजोर हैं। जबकि आज के विज्ञान ने हर क्षेत्र में अपेक्षाधिक उन्नति की है। वस्तुत: यह अति विकास ही जाने-अनजाने प्रकृति में अनचाहे परिवर्तन ला रहा है। संपूर्ण विश्व का वातावरण विशेष रूप से दूषित होता जा रहा है। आणविक परीक्षणों के कारण वातावरण में विषाक्त (जहरीले) तत्त्व बढ़ते जा रहे हैं। विशाल इन्डस्ट्रीज से बढ़ रहा जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण समाज एवं राष्ट्र के लिए खतरे की घण्टी है। सुविधाओं की वृद्धि तो हो रही है परन्तु साथ में समस्याएँ भी निरंतर बढ़ रही है। यथार्थ तत्त्व यह है कि आधुनिक विज्ञान और आधुनिक विचारधारा वातावरण को समुचित रूप से शुद्ध और स्वस्थ रखने में असफल सिद्ध हुई है। हमारी वर्तमान जीवन शैली इन दूषणों को अधिक बढ़ावा ही दे रही है। वातावरण की विकृति भी दो प्रकार की होती है - आन्तरिक और बाह्य। बड़े वैज्ञानिक परीक्षण बाह्य प्रकृति को विकृत कर रहे हैं और यही विकृतियाँ आन्तरिक विकारों में भी हेतुभूत बन रही है । बाह्य प्रकृति को ठीक करने के लिए नियंत्रण एवं उपचार आवश्यक है तथा आंतरिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा, मंत्र एवं औषधि प्रयोग, ध्यान- प्राणायाम आदि आवश्यक है। मनुष्य के शरीर में स्थित तत्त्वों की विकृति मुद्राओं के द्वारा

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