Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 216
________________ 162...शोध प्रबन्ध सार प्राप्त होने की संभावना हो। मुद्रा योग इंजेक्शन की भाँति त्वरित लाभ कर सकता है यदि उसकी समुचित साधना की जाए। नाट्य मुद्राओं का प्रयोग सामान्य दिनचर्या में तो होता ही है। साथ ही नृत्य, कला मंच आदि में भी देखा जाता है। विश्वविख्यात नाट्यकला की उपादेयता को और अधिक वर्धित करने में यह सहायभूत होगा। इसी के साथ मुद्राओं की ऐतिहासिकता एवं गुणाधिकता से पहचान करवाते हुए उनके उपयोग को विश्वव्यापी बनाएगा। खण्ड-17 जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा ___मुद्रा योग जैन विधि-विधानों का मुख्य अंग है। यदि आगम साहित्य का आलोडन करें तो कहीं-कहीं पर कुछ मुख्य आराधनाओं के लिए कुछ विशिष्ट मुद्राओं का निर्देश प्राप्त होता है। पूर्वाचार्यों द्वारा प्रत्येक क्रिया का गंफन अनेक बार प्रयोग करने के पश्चात गीतार्थ मुनियों के निर्देश अनुसार हुआ है। जैन प्रतिमाओं में भी मद्रा दर्शन होते हैं अत: जितना प्राचीन जैन प्रतिमाओं का इतिहास है उतना ही प्राचीन है जैन मुद्राओं का इतिहास। यदि और भी अधिक गहराई से चिंतन करें तो यह मुद्राएँ तीर्थंकर परमात्मा से सम्बन्धित है अत: जब से तीर्थंकर अर्थात जिन धर्म का अस्तित्व है तभी से मुद्राओं का भी अस्तित्व जैन धर्म में सुसिद्ध है। आगम साहित्य में मुद्रा विषयक उल्लेख सीमित है। मध्यकाल के अन्तिम पड़ावों में जैनाचार्यों द्वारा मुद्राओं पर विस्तृत लेखनी चलाई गई। इसका एक मुख्य कारण रहा उस समय में बढ़ते विधि-विधान। जैन धर्म निवृत्ति मूलक माना जाता है परंतु सामाजिक एवं लौकिक प्रभावों के तहत उसमें कालगत कई परिवर्तन आए। विधि-विधानों की अभिवृद्धि के साथ तत्सम्बन्धी अन्य सामग्री में भी वर्धन हुआ। मुद्रा उसी का एक अंग है। यदि जैन साहित्य में मुद्रा विषयक साहित्य का विभागीकरण किया जाए तो बहुत विशद साहित्य उपलब्ध नहीं होता। कई विधि-विधानों के ग्रंथ में एक विभाग इससे सम्बन्धित है तो कहीं-कहीं पर कुछ मुद्राओं के प्रयोग का निर्देश है। विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर, कल्याणकलिका आदि विधि-विधान प्रमुख ग्रन्थों में मुद्राओं का विस्तृत उल्लेख है।

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