Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 223
________________ शोध प्रबन्ध सार ...169 प्रतीत्य समुत्पाद आदि भगवान बुद्ध के मूलभूत सिद्धान्त हैं। इसके अतिरिक्त ध्यान, विपश्यना, निर्वाण आदि कई विषयों की भी सुंदर व्याख्याएं यहाँ पर प्राप्त होती है। मूलतः बौद्ध संस्कृति निवृत्तिमूलक है। कर्मकाण्ड को सर्वोपरि मुख्यता नहीं दी गई है। फिर भी हीनयान एवं महायान इन दोनों मुख्य परम्पराओं में प्रचुर रूप से कर्मकाण्ड का प्रवेश हो चुका है। यदि मुद्रा योग की अपेक्षा से बौद्ध साहित्य का अध्ययन करें तो इस परम्परा में हमें सर्वाधिक मुद्राओं का उल्लेख प्राप्त होता है । इस परम्परा में 500 से अधिक देवी-देवता हैं जिन्हें मुख्य रूप से छः भागों में बांटा जा सकता है। इनकी पूजा उपासना में जो भी सामग्री प्रयुक्त की जाती है, उन सभी से सम्बन्धित मुद्राओं का उल्लेख भी हमें प्राप्त होता है । यदि इन मुद्राओं की ऐतिहासिकता के विषय में विचार करें तो भगवान बुद्ध के जीवन से संदर्भित मुख्य रूप से पाँच मुद्राओं का उल्लेख प्राप्त होता है। यह मुद्राएँ अधिकांश बुद्ध प्रतिमाओं में भी परिलक्षित होती है। भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित 40 अन्य मुद्राओं का भी वर्णन प्राप्त होता है। यह मुद्राएँ उनके जीवनगत विविध घटनाओं को दर्शाती है। इनमें से कुछ मुद्राएँ तो बुद्ध प्रतिमाओं में प्राप्त होती है परंतु अधिकांश मुद्राओं के हमें चित्र ही प्राप्त होते हैं। बौद्ध पूजा-उपासना के सम्बन्ध में सर्वाधिक मुद्राएँ प्राप्त होती है । सप्तरत्न, अष्टमंगल, अठारह कर्त्तव्य, बारह द्रव्य हाथ मिलन, म म मडोस्, गर्भधातु मण्डल, वज्रधातु मण्डल, होम एवं विविध देवी-देवताओं के संदर्भ में हमें सैकड़ों मुद्राओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं। विभिन्न बौद्ध संस्कृति प्रधान राष्ट्रों में स्व परम्परा अनुसार भी अनेकशः मुद्राओं का गुंफन हुआ है। खण्ड-19 में बौद्ध परम्परा से सन्दर्भित मुद्राओं का चित्र सहित वर्णन किया गया है। यह खण्ड ग्यारह अध्यायों में विभक्त है । पहला अध्याय मुद्रा साधना के द्वारा भौतिक एवं आध्यात्मिक जगत पर होने वाले विभिन्न प्रभावों को वर्णित करता है। इसका वर्णन खण्ड-16 के प्रथम अध्याय के समान जानना चाहिए । दूसरा अध्याय भगवान बुद्ध के जीवन में आचरित विभिन्न मुद्राओं का वर्णन करता है। सामान्यतया भगवान बुद्ध के जीवन के संदर्भ में अभय, ध्यान, भूमिस्पर्श, व्याख्यान और धर्मचक्र प्रवर्त्तन इन पाँच मुद्राओं का उल्लेख विशेष रूप से प्राप्त होता है। यह सभी मुद्राएँ बोधि प्राप्ति के बाद उनके जीवन की विशिष्ट

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