Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 201
________________ शोध प्रबन्ध सार ... 147 बहिरंग जगत से जुड़ी हुई चेतना को अन्तरंग क्षेत्र की ओर मोड़ सकते हैं। मुद्रा योग शरीर एवं चित्त स्थिरीकरण के लिए ब्रह्मास्त्र है। जैसे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कभी निष्फल नहीं जाता वैसे ही विधियुक्त किया गया मुद्रा प्रयोग हमेशा सुपरिणामी ही होता है। घेरण्ड संहिता के अनुसार स्थिरता प्राप्ति के लिए मुद्रा योग की साधना करनी चाहिए। जब तक स्थिरता न सधे तब तक आंतरिक शक्तियों से संबंध की स्थापना नहीं हो सकती। आंतरिक शक्तियों को अनुभूत एवं जागृत किए बिना जीव सम्पूर्ण सिद्धि के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता। मुद्राएँ तत्त्व परिवर्तन की अपूर्व क्रिया है । हमारा शरीर पाँच तत्त्वों से निर्मित है। इन तत्त्वों की विकृति के कारण ही प्रकृति में असंतुलन और शरीर में रोग पैदा होते हैं । हस्तमुद्राएँ पंच तत्त्व को संतुलित करने का सशक्त माध्यम है। शरीरस्थ पाँच अंगुलियाँ पंच तत्त्व की प्रतिनिधि हैं। इन अंगुलियों की मदद से इन्हें घटाबढ़ा सकते हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार अंगूठे के अग्रभाग को किसी भी अंगुली के अग्रभाग से जोड़ा जाए तो उससे सम्बन्धित तत्त्व स्थिर होता है। वहीं अंगूठे के अग्रभाग को किसी भी अंगूली के निचले हिस्से अर्थात मूल पर्व पर लगाने से उस अंगुली से सम्बन्धित तत्त्व की शरीर में वृद्धि होती है । अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में अर्थात उसके आधार पर रखने से उस अंगुली से सम्बन्धित तत्त्व का शरीर से ह्रास होता है । इस प्रकार विभिन्न मुद्राओं के माध्यम से शरीरस्थ पंच तत्त्वों को संतुलित किया जा सकता है। मुद्रा योग की आवश्यकता क्यों ? Need is the mother of invention. आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। आज के अणु प्रधान व्यस्त युग में लोगों के पास दीर्घकालीन साधनाओं के लिए समय नहीं है। हर क्रिया की लोग त्वरित प्रक्रिया Fast Reaction चाहते हैं। इसी कारण जन सामान्य में आध्यात्मिक योग साधना के प्रति रूचि भाव प्रायः नहींवत देखा जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य हो या मानसिक शांति सभी के लिए व्यक्ति ऐसे उपचारों को चाहता है जो उसे तत्काल एवं सरल रूप में लाभ दे सके। इस परिप्रेक्ष्य में मुद्रा योग एक रामबाण औषधि है। भारतीय ऋषियों की यह खोज अत्यधिक प्रभावशाली, वैज्ञानिक, प्रयोग में सरल, अत्यन्त रहस्यमय तथा गहन तथ्यों को अभिव्यक्त करती है। मुद्रा विज्ञान आधुनिक विज्ञान की अणुधारा से भी अधिक सूक्ष्म, गहन, सारगर्भित एवं विस्तृत है। इस विज्ञान के

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