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152...शोध प्रबन्ध सार
खण्ड-19 : बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन। खण्ड-20 : यौगिक मुद्राएँ- मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग। खण्ड-21 : आधुनिक चिकित्सा में मद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
प्रथम खण्ड में मुद्रा का स्वरूप विश्लेषण करते हुए तत्संबंधी कई मूल्यवान तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें मुद्रा योग का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक पक्ष भी प्रस्तुत किया है जिससे शोधार्थी एवं आत्मार्थी आवश्यक जानकारी एक साथ प्राप्त कर सकते हैं। इस खण्ड का अध्ययन करने से परवर्ती खण्डों की विषय वस्तु भी स्पष्ट हो जाती है। अत: मुद्रा अध्ययन में मुख्य आधारभूत होने से इस खण्ड को प्रथम क्रम पर रखा गया है।
तदनन्तर सर्व प्रकार की मुद्राओं का उद्भव नृत्य एवं नाट्य कला से माना जाता है। विश्व की भौगोलिक गतिविधियों के अनुसार आज से लगभग बयालीस हजार तीन वर्ष साढ़े आठ मास न्यून एक कोटाकोटि सागरोपम पूर्व भगवान ऋषभदेव हुए, जिन्हें वैदिक परम्परा में भी युग के आदि कर्ता माना गया है। जैन आगमकार कहते हैं कि उस समय मनुष्यों का जीवन निर्वाह कल्पवृक्ष से होता था। धीर-धीरे काल का सुप्रभाव निस्तेज होने लगा, जिससे भोजन आदि की कई समस्याएँ उपस्थित हुई। तब ऋषभदेव ने पिता प्रदत्त राज्य पद का संचालन करते हुए लोगों को भोजन पकाने, अन्न उत्पादन करने, वस्त्र बुनने आदि का ज्ञान दिया। पारिवारिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन आमोद-प्रमोद एवं नीति नियम पूर्वक जीया जा सके, एतदर्थ उन्होंने पुरुषों को 72 एवं स्त्रियों को 64 प्रकार की विशिष्ट कलाएँ सिखाई। उनमें नृत्य-नाट्य
और मुद्रा कला का भी प्रशिक्षण दिया। इससे सिद्ध होता है कि मद्रा विज्ञान की परम्परा आदिकालीन एवं प्राचीनतम है। इसलिए नाट्य मुद्राओं को द्वितीय क्रम पर स्थान दिया गया है।
प्रश्न हो सकता है कि नाट्य मुद्राओं पर किया गया यह कार्य कितना उपयोगी एवं प्रासंगिक है? इस सम्बन्ध में इतना स्पष्ट है कि जीवन में स्वाभाविक मुद्राओं का अद्भुत प्रभाव पड़ता है।
1. नृत्य में प्राय: सभी मुद्राएँ सहज होती है।
2. जो लोग नृत्य-नाट्य आदि में रूचि रखते हैं वे इस कला के मर्म को समझ सकेंगे तथा इसकी उपयोगिता के बारे में अन्यों को ज्ञापित कर इस कला का गौरव बढ़ा सकते हैं।