Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 211
________________ शोध प्रबन्ध सार ...157 किया है। अन्त में मुद्रा साधना से व्यक्ति को होने वाले लाभ एवं तत्सम्बन्धी कुछ रहस्यात्मक पक्षों को उजागर किया है। इस अध्याय लेखन का मुख्य हेतु मुद्राओं की महत्ता, आवश्यकता एवं सामर्थ्य को प्रकट करना है। तृतीय अध्याय में मुद्रा योग का ऐतिहासिक अनुसंधान किया गया है। भारतीय संस्कृति में मुद्राओं की अवधारणा प्राच्य काल से देखी जाती है। पूर्वकाल में जब भाषा का समुचित विकास नहीं हुआ था तब मुद्रायोग एक मात्र विचारों के संप्रेषण का मुख्य साधन था। चर्चित अध्याय में मुख्य रूप से मुद्रा का उद्भव कब, किन स्थितियों में हुआ? विभिन्न धर्म परम्पराओं में इसका अस्तित्व किस रूप में है? भिन्न-भिन्न परम्पराओं में इसका महत्त्व क्यों है? वर्तमान में इसका प्रयोग उपचार के क्षेत्र में सर्वाधिक क्यों? ऐसे कई बिन्दुओं पर विचार किया गया है। इस अनुचिंतन के माध्यम से मुद्राओं की सर्वकालिकता एवं सर्वग्राह्यता को सुस्पष्ट किया गया है। ___मुद्रा विज्ञान एक विश्व विस्तृत विद्या है। सर्वत्र इसका समादर एवं समाचरण एक लाभकारी सर्वांगीण साधना के रूप में किया जाता है। विविध भारतीय परम्पराएँ हो अथवा अन्य विदेशी धर्म संप्रदाय, अध्यात्म का क्षेत्र हो या कला का क्षेत्र, आधुनिक जीवनशैली हो अथवा प्राचीन सभ्यता सभी में मुद्राओं का उपयोग एवं महत्त्व यथावत है। इसी सत्य को परिपुष्ट करने हेतु जैन एवं जैनेतर परम्परा में उपलब्ध मुद्राओं की सूची देते हुए उसका तुलनात्मक अध्ययन चतुर्थ अध्याय में प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय विविध परम्पराओं में मुद्रा योग की व्यापकता को प्रकाशित करता है। ___ इस पन्द्रहवें खण्ड का अंतिम पाँचवां अध्याय उपसंहार रूप में वर्णित है। मुद्रा मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। यह व्यक्ति के मन, वचन, काया द्वारा अभिव्यक्त होती है तथा शरीर के बाह्य एवं आभ्यंतर समक्ष घटकों को प्रभावित करती है। इस अध्याय में मुद्रा शब्द का विश्लेषण करते हुए उसके विभिन्न अर्थ एवं उनके प्रयोजन बताए गए हैं। मुद्रा योग की मूल्यवत्ता को दर्शाने हेतु मानव शरीर के साथ मुद्राओं के सम्बन्ध को स्पष्ट किया है। साथ ही अध्ययन की दृष्टि से इसके विभागीकरण आदि की चर्चा की गई है। इस प्रकार शोध प्रबन्ध के चतुर्थ

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236