Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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शोध प्रबन्ध सार ...149 मुद्रा प्रयोग के द्वारा शरीर में अतिशीघ्र तात्त्विक प्रत्यावर्तन, विघटन परिवर्तन संभव होने लगते हैं। कई मुद्राओं के नियमित प्रयोग से सम्पूर्ण स्नायु मंडल में आमूल चूल परिवर्तन होने लगते हैं। अनेक दिव्य शक्तियों एवं ज्ञान (sixth sense) का जागरण होता है। मुद्रा प्रयोग से शरीर मल रहित होकर परम सात्त्विक स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकता है। शरीरस्थ अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के संतुलन, तत्त्वों के समीकरण, एक्युप्रेशर आदि चिकित्सा में मुद्राओं का उपयोग सुसिद्ध हो चुका है।
हमारे शरीर रूपी भवन में सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध है। इसमें कूलर, हीटर, एयरकंडिशन, रेडियो, कैमरा, कम्प्यूटर आदि सर्व शक्तियाँ व्याप्त है। भारतीय योगियों ने संपूर्ण शरीर का अन्वेषण कर कितने ही सूक्ष्म रहस्यों को प्रकट किया है।
मद्राओं के सही एवं संतुलित उपयोग से व्यक्ति अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों और वातावरण में भी अपना संतुलित जीवन यापन करता हुआ स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन जीते हुए सुख, शान्ति एवं समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
यौगिक साधनाएँ एवं मुद्रा प्रयोग- मुद्रा प्रयोग एक बहुत बड़ी यौगिक साधना है। यदि सूक्ष्मता पूर्वक विचार करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि मुद्रा साधना यौगिक साधनाओं की आधार भूमि है। किस भी प्रकार की यौगिक साधना हो उसमें मुद्रा प्रयोग अवश्य रूप से होता है। अत: यह सुसिद्ध है कि मुद्रा साधना के बिना कोई भी यौगिक साधना असंभव एवं अपूर्ण हैं।
ध्यान जिसे अध्यात्म साधना का प्रकृष्ट प्रयोग माना जाता है। यदि गहराई से निरीक्षण करें तो स्पष्ट होता है कि ध्यान की किसी भी अवस्था में मुद्रा अवश्यंभावी है। ध्यान किसी न किसी आसन विशेष में किया जाता है। आसन एक निश्चित आकार में ढला होता है। अत: उसमें मुद्रा सुनिश्चित है।
आसन एवं मुद्रा दोनों ही यौगिक साधना के प्रमुख अंग है। दोनों में स्वरूप की अपेक्षा अन्तर दिखाई देता है। परन्तु यथार्थतः आसन मुद्राओं की उच्च भूमिका है। हठयोग एक कठिन यौगिक साधना है। इस साधना में सात मुख्य अंगों की कल्पना की गई है। उनमें से मुद्रा का तीसरा स्थान है।
मुद्रा योग के लाभ- मानव देह प्रकृति द्वारा निर्मित एक