Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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शोध प्रबन्ध सार .67
अहोभाव पूर्वक उन्हें आहार ग्रहण हेतु आमंत्रित करता है । दूसरी बात मुनि के आहार ग्रहण का कारण परिश्रम से बचना नहीं अपितु अहिंसा धर्म का परिपालन है।
आज की आधुनिक जीवन शैली में भिक्षा प्राप्ति एक बृहद समस्या है। Nuclear Family और नौ से पाँच ऑफिस के युग में मध्याह्न के समय भोजन प्राप्ति नहीवत हो पाती है। बढ़ती हुई महंगाई के कारण लोग अतिरिक्त आहार बनाने से बचते हैं। अतिथियों के आने पर भी प्रायः होटल, रेस्टोटेन्ट आदि में ही भोजन रखा जाता है। Bread Butter, Pizza, Maggi और Noodles जैसे Fast and easy खाद्य पदार्थ लोगों को अधिक प्रिय है। बासी, अभक्ष्य, जमीकन्द आदि का विवेक अधिकांश परिवारों में नहीवत रह गया है । साधुसाध्वियों को कैसा आहार बहराना चाहिए इसकी जानकारी भी आज के युवा वर्ग को नहींवत है। इन परिस्थितियों में मुनि अपने नियमों का निर्दोष रूप से पालन किस प्रकार करें? यह एक ज्वलंत प्रश्न है।
जैन मुनि के भिक्षाचर्या की महत्ता - यदि जैन मुनि की भिक्षाविधि पर चिंतन करें तो यह एक आदर्श वृत्ति है । इनके नियम- मर्यादाओं का गठन किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष के लिए नहीं हुआ है। मुनि गोचरचर्या या माधुकरी वृत्ति के द्वारा आहार ग्रहण करता है। इससे वह गृहस्थ वर्ग पर भारभूत नहीं बनता।
दीक्षा लेने से पूर्व मुनि चाहे धनाढ्य परिवार से हो या सामान्य परिवार से दीक्षा लेने के बाद वह सब बातें कोई महत्त्व नहीं रखती । सभी को समान रूप से मुनि जीवन के नियमों का पालन करना होता है। भिक्षागमन के द्वारा विशिष्ट ज्ञान, श्रेष्ठ पद, पारिवारिक पृष्ठभूमि का अभिमान नहीं होता। मुनि को सामाजिक परिस्थितियों का भी सम्यक ज्ञान होता है जिससे वह समाज को तदनुरूप मार्गदर्शन दे सकता है।
इस प्रकार ऐसे अनेक पक्ष हैं जिन अपेक्षाओं से मुनिवर्ग के लिए भिक्षाचर्या एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है। प्रस्तुत खण्ड में भिक्षाचर्या सम्बन्धी विविध नियम - उपनियमों की चर्चा की गई है। वर्तमान संदर्भों में उसके औचित्य आदि पर भी विचार किया है। भिक्षाचर्या के विभिन्न घटकों पर विचार करते हुए इस खण्ड को सात अध्यायों में वर्गीकृत किया गया है।
भिक्षा मुनिचर्या का एक आवश्यक अंग है। इसी कारण श्रमण का अपर