Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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शोध प्रबन्ध सार ...123 जिनपूजा की पारमार्थिक महत्ता- यदि पारमार्थिक दृष्टि से जिनपूजा की महत्ता के विषय में चिंतन करें तो ज्ञात होता है कि जिनपूजा पूजक को पूज्यता प्राप्त करवाती है। आत्मा को परमात्मा बनाती है। चित्त की प्रसन्नता के साथ की गई परमात्म पूजा अनेक गुणा लाभ देती है जैसे- पाँच कोड़ी के पुष्पों से पूजा करके पल्लिपति जयताक कुमारपाल महाराजा बना। ___महानिशीथसूत्र के अनुसार एकाग्रता पूर्वक चैत्यपूजा, अर्चना आदि करने से मनवांछित की प्राप्ति होती है।
जिनदर्शन द्वारा स्वयं के शुद्ध स्वरूप का दर्शन होता है। जैसे ज्योति से ज्योति प्रकट होती है वैसे ही जिनदर्शन-पूजन से आत्मा परमात्मा बनती है। आस्था पूर्वक की गई पूजा दु:ख एवं दरिद्रता का नाश करती है। शास्त्रोल्लेख के अनुसार
दर्शनाद् दुरित ध्वंसि, वन्दनात् वांछित प्रदः ।
पूजनात् पूजकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः ।। जिनपूजन आठों कर्मों के क्षय में हेतुभूत बनता है एवं परिणाम विशुद्धि के माध्यम से शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करवाता है।
भक्ति वृद्धि का राजमार्ग-त्रिकाल पूजा- श्रावक के आवश्यक कर्तव्यों का वर्णन करते हुए जैनाचार्यों ने श्रावक के लिए त्रिकाल पूजा का विधान बताया है। गृहस्थ के दैनिक जीवन में परमात्म भक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह जीवन में सद्गुणों एवं सद्भावों का निर्माण करती है। ___जिस प्रकार डॉक्टर की दवा तीन बार लेने पर शीघ्र फायदा करती है वैसे ही परमात्मा के त्रिकाल दर्शन आत्मा की बैटरी को चार्ज करते हैं। किसी भी क्रिया को बार-बार करने पर उसके संस्कार गाढ़ होते हैं। प्रत्येक आत्मा का सर्वोच्च लक्ष्य परमात्म स्वरूप की प्राप्ति है। त्रिकाल पूजा के द्वारा बार-बार परमात्मा के दर्शन होते रहते हैं। इससे परमात्मा का स्वरूप पूजक के अन्त:स्थल में स्थिर हो जाता है। त्रिकाल पूजा का महत्त्व दर्शाते हुए शास्त्रकारों ने कहा है
जिनस्य पूजनं हन्ति, प्रातः पाप निशा भवम् ।
आजन्म विहित मध्ये, सप्त जन्मकृतः निशि ।। अर्थात परमात्मा की प्रात:कालीन पूजा रात्रि के पापों का नाश करती है।