Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
110...शोध प्रबन्ध सार
विविध दृष्टियों से सामायिक का शाब्दिक स्वरूप बताते हुए सामायिक की महत्ता, सामायिक और ज्ञान, सामायिक और संज्ञी-असंज्ञी, सामायिक और आहारक पर्याप्ति, सामायिक चारित्र एवं गुप्ति में अंतर, सामायिक और समिति में अन्तर, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सामायिक की प्रासंगिकता, सामायिक सम्बन्धी दोष, सामायिक सम्बन्धी विविध शंकाएँ आदि अनेक महत्त्वपूर्ण पक्षों का यहाँ सारगर्भित विवेचन किया है। यह वर्णन सामायिक साधना में निखार लाने में अवश्य सहयोगी बनेगा।
तृतीय अध्याय चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति से सम्बन्धित है। इसमें चतुर्विंशतिस्तव का तात्त्विक विवेचन किया है।
___षडावश्यक में चतुर्विंशतिस्तव का दूसरा स्थान है। चौबीस तीर्थंकरों के नामोच्चारण पूर्वक उनका गुण कीर्तन करना चतुर्विंशतिस्तव कहा जाता है। मूलतः यह भक्ति प्रधान आवश्यक है। इस आवश्यक में उन महापुरुषों का गुणगान एवं प्रशंसा की गई है, जिन्होंने राग-द्वेष आदि विषय-कषायों का नाश कर आत्मा को उज्ज्वल और प्रकाशमान बनाया है।
प्रस्तुत अध्याय में चतुर्विंशतिस्तव का प्रतिकात्मक अर्थ, तीर्थंकर परमात्मा की स्तुति आवश्यक क्यों? चतुर्विंशतिस्तव में छ: आवश्यकों का समावेश कैसे? चतुर्विंशतिस्तव सम्बन्धी साहित्य, चतुर्विंशति में गर्भित नवत्रिक आदि अनछुए अनेक पहलुओं का सारगर्भित विवेचन किया गया है। ___ चतुर्थ अध्याय में वन्दन आवश्यक के रहस्यात्मक पक्षों का मौलिक विवेचन किया गया है। पूज्य पुरुषों को वंदन करने की परम्परा आचार जगत में सदा काल से जीवन्त रही है। उनमें भी देव और गुरु को विधि पूर्वक वन्दन किया जाता है क्योंकि ये पूज्यों के भी पूज्य हैं। इन्हें वंदन करने से श्रद्धा गुण विकसित होता है। द्वितीय आवश्यक के द्वारा परमात्मा की एवं तृतीय वंदन आवश्यक द्वारा सद्गुरु की उपासना की जाती है।
वन्दन आवश्यक के विशुद्धि परिपालन के लिए प्रस्तुत अध्याय में वन्दन शब्द का मौलिक स्वरूप, वन्दन के प्रकार, वन्दन आवश्यक में प्रयुक्त सूत्रों के नाम, कृतिकर्म करने का अधिकारी कौन? वन्दनीय कौन है? वन्दन कब करना चाहिए? अवन्दनीय को वन्दन करने पर कौनसे दोष लगते हैं? वन्दन कब करना और कब नहीं? कृतिकर्म कहाँ और कब? वन्दना सम्बन्धी 32 दोष आदि