Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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4 ... शोध प्रबन्ध सार
ले पाया फिर भी सम्पूर्ण विश्व में इसे आदर्श एवं अनुकरणीय धर्म के रूप में माना जाता है।
दोनों ही परम्पराओं के अनुयायी तपस्या आदि चेष्टाओं के द्वारा कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्ति को महत्त्व देते हैं।
प्रवर्त्तक और निवर्त्तक धर्म में विधि-विधानों के उद्भव एवं विकास के विषय में विद्वज्ञ डॉ. सागरमलजी जैन द्वारा प्रस्तुत यह सारणी दृष्टव्य है।
मनुष्य
प्रवर्तक धर्म
I
देह
I
वासना
भोग
अभ्युदय (प्रेम)
स्वर्ग
| कर्म
प्रवृत्ति
प्रवर्त्तक धर्म
I
निवर्त्तक धर्म
चेतना
विवेक
विराग (त्याग)
निःश्रेयस
I
मोक्ष
संन्यास
| निवृत्ति
निवर्त्तक धर्म
|