Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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20...शोध प्रबन्ध सार प्रभाव पड़ सकता है? आदि अनेक प्रासंगिक एवं विचारणीय तथ्य है।
इस शोध कार्य के माध्यम से इन विषयों पर विद्वद वर्ग का ध्यान केन्द्रित करने एवं सामर्थ्य अनुसार जिनशासन की परम्परा को अक्षुण्ण बनाए रखने का प्रयास किया है। यद्यपि यह एक कठिन कार्य है परन्तु उपलब्ध साहित्य, शासन सम्राट जैनाचार्यों का मार्गदर्शन एवं मुनि भगवंतों के सहयोग से इस सिन्धु के कुछ बिन्दुओं को चिन्तन का विषय बना पाई हूँ।
जैन विधि विधानों का क्षेत्र महासागर के समान विस्तृत है उसमें यह कार्य मात्र बिन्दु रूप है। यदि यह कार्य विविध परिप्रेक्ष्यों में किया जाए तो वटवृक्ष की भाँति दीर्घ लाभ की परम्परा का सृजन हो सकता है? इस सन्दर्भित कई विषय ऐसे हैं जिनके विषय में यथोक्त जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई। इसी के साथ साधु जीवन की मर्यादाएँ एवं जिम्मेदारियाँ तथा शोध की समय सीमा के कारण भी यह कार्य सीमित दायरे में ही हो पाया है। विद्वद वर्ग इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित करें तो अवश्यमेव श्रुत सागर से और भी अविरल रत्नों को खोजकर निकाला जा सकता है। यदि विधि-विधान एवं कर्मकाण्ड के संबंध में तटस्थ दृष्टि से कार्य किया जाए तो अनेक सुपरिणाम सामने आ सकते हैं। विश्रृंखलित जैन समाज को एक सम्यक दिशा प्राप्त हो सकती है।
ज्ञातव्य है कि विधि-विधानों का दायरा विस्तृत है। कुछ विधान गृहस्थ जीवन से सम्बन्धित हैं तो कुछ मुनि जीवन से। कुछ विधि-अनुष्ठानों में दोनों की ही प्रमुखता रही हुई है तो कुछ विधानों का गुंफन इस प्रकार किया गया है कि वे सामान्य जनता के लिए उपयोगी हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर इस शोध कार्य को मुख्य रूप से चार भागों में प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रथम भाग गृहस्थ वर्ग से सम्बन्धित है। जैन साधना का प्रारंभ गृहस्थ साधक से होता है। क्रिया अनुष्ठान के मार्ग पर आरूढ़ होकर गृहस्थ श्रावक साधना में प्रगति करता है इसलिए इनकी समुचित जानकारी होना सर्वप्रथम आवश्यक है। विधि-विधान संबंधी इस भाग में तीन खण्डों को समाहित करते हुए श्रावक जीवन की अथ से इति तक की समस्त चर्याओं का आगमोक्त आधार पर विविध परिप्रेक्ष्यों में अध्ययन किया गया है। श्रावक के नित्य आचार, दैनिक कर्त्तव्य, व्रत ग्रहण आदि विविध विषयों की चर्चा इसमें शोध परक दृष्टि से की गई है।