Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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शोध प्रबन्ध सार ...41 सद्गृहस्थ बनाने के लिए जैनाचार्यों ने कई प्राथमिक गुणों एवं योग्यताओं का उल्लेख किया है। उन गुणों से अलंकृत गृहस्थ ही सम्यक्त्व व्रत, सामायिक व्रत, बारह व्रत आदि स्वीकार कर सकता है। आचार्यों ने मार्गानसारी के पैंतीस गुणों के नाम से इन गुणों का उल्लेख किया है। इसी प्रकार श्रावक के 21 गुणों की चर्चा भी जैन वाङ्मय में प्राप्त होती है।
जैनाचार्यों ने श्रावक के लिए कुछ आचार-नियमों का पालन भी आवश्यक माना है। जैन धर्म की सूक्ष्म अहिंसा एवं मानवीयता इन गुणों से सिद्ध हो जाती है। सप्तव्यसन का त्याग एक जैन गृहस्थ के लिए परमावश्यक है। इसी के साथ कई दैनिक, चातुर्मासिक, वार्षिक कर्तव्यों का पालन भी जैन गृहस्थ के लिए आवश्यक माना गया है।
श्रावक द्वारा आचरणीय विभिन्न व्रत- श्रावक जीवन का दायरा अत्यन्त विस्तृत है। उसे सीमित या मर्यादित करने के लिए अनेक प्रकार के मार्ग शास्त्रों में बताए गए हैं। उन नियम मर्यादाओं को स्वीकार करते हुए गृहस्थ साधना मार्ग में प्रगति कर सकता है। इसी बात को ध्यान में रखकर कई दैनिक आवश्यक नियम-मर्यादाएँ बनाई गई तो कई नियम व्रत ऐसे भी हैं जिनका पालन निश्चित या स्वीकृत अवधि के लिए किया जाता है।
प्रस्तुत कृति में हमारी चर्चा के मुख्य विषय वह व्रत हैं जिनका स्वीकार श्रीसंघ की साक्षी में किया जाता है अथवा जिनके पालन से साधना में विशिष्ट ऊंचाईयाँ प्राप्त होती है। इस तृतीय खंड में प्रमुखतया सम्यक्त्व व्रतारोपण, बारह व्रतारोपण, सामायिक व्रतारोपण, पौषधव्रत, उपधानतप वहन एवं उपासक प्रतिमाराधना की चर्चा सात अध्यायों के माध्यम से की जाएगी।
व्रतधारी के लिए करणीय कर्त्तव्य- आचार्य जिनप्रभसूरि के मतानुसार सम्यक्त्व आदि व्रत धारण करने वाले गृहस्थ को निम्न कृत्यों का अवश्य पालन करना चाहिए।
• प्रतिदिन शक्रस्तवपूर्वक त्रिकाल चैत्यवंदन करना चाहिए। • छ: माह तक दोनों संध्याओं में विधिपूर्वक चैत्यवंदन करना चाहिए। • प्रतिदिन नमस्कार मन्त्र की एक माला गिननी चाहिए।
• द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि पर्व तिथियों में यथाशक्ति तप करना चाहिए।