Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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शोध प्रबन्ध सार ...51
इससे कई अधिक ज्ञान एक 8-10 साल के बच्चे के पास होता है। कच्ची मिट्टी को आकार देना जितना आसान है, बच्चों को भी इच्छित वातावरण में ढालना उतना ही सहज है। एक उम्र के बाद विचारधारा एवं जीवन शैली को बदलना कठिन होता है। अत: जो बालक स्वेच्छा से संयम मार्ग पर अग्रसर होते हैं उन्हें योग्यता अनुसार एवं परीक्षण पूर्वक इस मार्ग पर अवश्य प्रवृत्त करना चाहिए। इस विषय में कई अन्य तर्क भी दिए जाते हैं जिसकी चर्चा खण्ड-4 में प्रसंगानुसार की जाएगी।
सांसारिक सुख-वैभव सागर के पानी के समान हैं ये कभी संतोष एवं समाधि दे ही नहीं सकते। तृष्णा शमन के लिए तो संयम रूपी नदी के मीठे जल का आस्वाद लेना आवश्यक है।
विहार यात्रा, भिक्षा वृत्ति आदि अन्य मुनि आचारों में भी आज के समय में अनेक कठिनाइयाँ देखी जाती है। कई लोग बढ़ते हुए Accident आदि की वजह से वाहन प्रयोग आदि का पक्ष रखते हैं तो कुछ शासन प्रभावना हेतु Laptop, mobile आदि आधुनिक साधनों के प्रयोग की सलाह देते हैं और कभी-कभी कुछ बातें उचित भी लगती है, परन्तु यदि सूक्ष्मता पूर्वक विचार करें तो उक्त सभी साधन संयमी जीवन के विघातक ही प्रतीत होते हैं। संयम जीवन का मूल लक्ष्य आत्म कल्याण है एवं तदनन्तर समाज कल्याण। जबकि बाह्य सभी साधन सुविधाओं के साथ आत्म पतन में हेतुभूत बनते हैं।
इस खण्ड लेखन का मुख्य उद्देश्य संयमी जीवन की सूक्ष्मताओं से परिचित करवाते हुए वर्तमान में भी उन नियमों की प्रासंगिकता एवं महत्ता को सिद्ध करना तथा समाज कल्याण के लिए अन्य अपवाद मार्गों का सूचन करना है। इस खण्ड में मुख्य रूप से मुनि व्रतारोपण सम्बन्धी चर्चा की गई है। __ वस्तुत: आध्यात्मिक विकास एवं चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सदाचार का सर्वोपरि स्थान है। सदाचारवान व्यक्ति ही अक्षुण्ण सुख की सृष्टि कर सकता है। इसीलिए कहा भी गया है- "आचार परमो धर्मः" आचार सभी का परम
धर्म है।
प्रस्तुत कृति में सदाचार युक्त जीवन में प्रवेश करने से सम्बन्धित विधियोंउपविधियों का मार्मिक विवेचन किया गया है जो सात अध्यायों में पूर्ण रूपेण अपने विषय की प्रस्तुति करता है।