Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
शोध प्रबन्ध सार ...43
प्रतिपादित करने हेतु द्वितीय अध्याय में सम्यक दर्शन के विविध घटकों से परिचित करवाया है।
सर्वप्रथम सम्यक दर्शन के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसके लक्षण एवं प्रकारों की चर्चा की है। तदनन्तर सम्यक दर्शन प्राप्ति के हेतु एवं विविध दृष्टियों से उसका वर्गीकरण किया है। एक बार सम्यक्त्व के विविध पहलुओं से परिचित करवाने के बाद सम्यक्त्वी में आवश्यक योग्यताएँ या स्वयं को जानने के थर्मामीटर के रूप में व्यवहार सम्यक्त्वी के 67 गुण, तत्सम्बन्धी 25 दोष, सम्यक दर्शन की आवश्यकता, विविध सम्प्रदायों में सम्यग्दर्शन विषयक धारणा, मार्गानुसारी के गुण आदि सम्यक्त्व वर्धक अनेक बिन्दुओं की चर्चा की है।
अंतत: विविध जैन परम्पराओं में प्रचलित सम्यक्त्व व्रत आरोपण विधि एवं तत्सम्बन्धी रहस्यों को उजागर किया गया है। इस अध्याय का मुख्य ध्येय सम्यक दर्शन को पुष्ट करना है क्योंकि सम्यक्त्व व्रत का स्वीकार सद्गुण रूपी बीज का आधान है। जब कुछ बोया जाएगा,तभी कुछ पाया जाएगा। इसी कारण सर्वप्रथम सम्यक्त्व व्रत आरोपण विधि प्रस्तुत की गई है।
बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन करते हुए तृतीय अध्याय का लेखन किया गया है।
श्रावक साधना का मूल उत्स व्रतों पर ही निर्भर है। इनके अभाव में श्रावक साधना अर्थ हीन है। जैन साहित्य में आचार धर्म को सर्वाधिक महत्ता दी गई है। द्वादश व्रत या बारह व्रत श्रावकाचार की Guideline है। इनके अन्तर्गत पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत एवं चार शिक्षाव्रतों का समावेश होता है।
वर्णित अध्याय में श्रावक धर्म का प्रतिपादन करते हुए बारह व्रतों के स्वरूप का विस्तृत वर्णन किया है। दिगम्बर एवं श्वेताम्बर परम्परा में बारह व्रत विषयक धारणा में प्राप्त मतभेद एवं व्रतों का पारम्परिक स्वरूप तद्विषयक ज्ञान को पुष्ट करेगा। इसी के साथ व्रत ग्रहण के इच्छुक श्रावकों के मार्गदर्शन के लिए व्रत ग्रहण सम्बन्धी आवश्यक निर्देशों, विकल्पों एवं भेदों का भी निरूपण किया है। ___ इस अध्याय के माध्यम से श्रावक वर्ग बारह व्रतों से पूर्ण रूपेण परिचित होकर स्व सामर्थ्य अनुसार उन्हें ग्रहण करने की भूमिका बना पाएं एवं अविरत