Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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शोध प्रबन्ध सार ...37 अनेक परम्पराओं में इस संस्कार के समय उपवीत (जनेऊ) भी धारण करवाया जाता है।
पूर्व काल में अध्ययन हेतु बच्चों को गुरु कुल में भेजा जाता था। यह संस्कार बालक के अध्ययन योग्य होने का सूचक है। वर्तमान में 2-3 साल के बच्चों को स्कूल भेजने की परम्परा उसके मानसिक विकास में अवरोध पैदा करती है। उनकी बाल सुलभ चेष्टाओं एवं बचपन को समाप्त कर देती हैं।
इस अध्याय में उपनयन संस्कार की प्राचीनता आदि अनेक विषयों पर चर्चा की गई है। विविध परम्पराओं में इसका स्वरूप एवं विधान भी बताया गया है। बालकों के सर्वांगीण एवं समुचित विकास के लिए यह अध्याय महत्त्वपूर्ण दिशा सूचक है।
चौदहवें अध्याय में चर्चित विद्यारम्भ संस्कार विधि उपनयन संस्कार को अधिक पुष्ट करती हैं। उपनयन संस्कार द्वारा बालक को गुरुकुल में ले जाया जाता है वहीं विद्यारम्भ संस्कार द्वारा विद्याध्ययन का प्रारंभ करवाया जाता है। जैन धर्म में इस संस्कार की प्राचीनता भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथासूत्र, कल्पसूत्र आदि आगमों में प्राप्त उल्लेखों से सुसिद्ध हो जाती है।
विद्या विहीन मनुष्य को पशु तुल्य माना गया है। इस संस्कार के द्वारा मनुष्य को ज्ञानवान बनाने का अभ्यास प्रारंभ किया जाता है। इस अध्याय में विद्यारम्भ सम्बन्धी उचित काल, सामग्री, अधिकारी आदि का निर्देश देते हुए तुलनात्मक विवेचन भी प्रस्तुत किया गया है । इस अध्याय का मुख्य लक्ष्य उचित अध्ययन विधि का सम्पादन एवं मनुष्य में मनुष्यत्व का विकास करना है।
विवाह संस्कार गृहस्थ जीवन का एक महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक संस्कार है। इस संस्कार के बाद ही गृहस्थ की पारिवारिक जिंदगी का प्रारंभ होता है। भारतीय संस्कृति में इस संस्कार को अत्यंत सम्माननीय स्थान प्राप्त है।
पंद्रहवें अध्याय में विवाह संस्कार विधि का निरूपण किया है। विवाह दो आत्माओं का पवित्र सम्बन्ध है । आधुनिक युग में इसे विषय भोग का वैधानिक प्रमाण पत्र (licence) माना जाता है परन्तु इसकी तात्त्विकता इससे बहुत ऊपर उठी हुई है।
इस अध्याय में विवाह संस्कार विधि सम्बन्धी आवश्यक पहलुओं की चर्चा की गई है। विविध परिप्रेक्ष्यों में इसके महत्त्व एवं प्रयोजन की चर्चा भी इस