Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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8... शोध प्रबन्ध सार
होती है। शास्त्र वचन भी है- “ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः " अर्थात ज्ञान और क्रिया दोनों के समाचरण से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकान्त क्रिया या एकान्त ज्ञान से साधना की संसिद्धि कभी नहीं होती । साधना एवं सफलता के शिखर को छूने के लिए दोनों का समीकरण आवश्यक है।
जगत की प्रत्येक वस्तु ज्ञान एवं क्रिया पूर्वक ही संचालित होती है। ज्ञान और क्रिया एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक ही रथ के दो पहिये हैं। यदि एक न हो तो दूसरे का अस्तित्त्व अपने आप ही समाप्त हो जाता है और वह रथ कभी अपने गंतव्य तक पहुँच भी नहीं सकता।
क्रिया रहित ज्ञान मार्ग को जानने वाले, उस पथिक के समान हैं जिसे रास्ते का ज्ञान तो है परन्तु मार्ग पर गति नहीं है और बिना गति किए बिना वह कभी अपनी मंजिल तक पहुँच ही नहीं सकता। वैसे ही शास्त्रों को जानने वाला साधक यदि तदनुरूप सामायिक, प्रतिक्रमण आदि का आचरण नहीं करता है तो वह कभी भी मोक्ष मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकता । तत्त्वार्थसूत्र में इसीलिए कहा गया है- 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्ग : ' अर्थात सम्यकदर्शन (Right Faith), सम्यकज्ञान (Right Knowledge) और सम्यकचारित्र (Right Character) ये तीनों मिलकर ही मोक्ष मार्ग का प्रणयन कर सकते हैं।
किसी कवि ने कहा है
क्रिया बिना ज्ञान नहीं कबहूं, क्रिया ज्ञान बिनु नाहिं । क्रिया ज्ञान दोउ मिलत रहत है, ज्यों जलरस जल माहिं । आवश्यकनिर्युक्ति के अनुसार आचरण विहीन अनेक शास्त्रों का ज्ञाता भी संसार समुद्र से पार नहीं हो सकता। जिस प्रकार निपुण चालक भी वायु की गति के अभाव में जहाज को किनारे नहीं पहुँचा सकता उसी प्रकार ज्ञानी आत्मा भी तप, संयम, क्रिया रूप सदाचरण के अभाव में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। मात्र ज्ञान होने से कभी भी कार्य सिद्धि नहीं होती। कोई यदि तैरने की कला में पी. एच. डी. भी कर ले परन्तु यदि तैरने की क्रिया नहीं जानता हो तो डूबते समय उसका ज्ञान किसी काम का नहीं है, इसी प्रकार शास्त्रों का ज्ञान होने पर भी व्यक्ति जब तक धर्म का आचरण नहीं करता तब तक उसका शास्त्र ज्ञान उसे संसार सागर से पार नहीं कर सकता । ज्ञान रहित आचरण कभी भी सम्यक या