Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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12...शोध प्रबन्ध सार
• प्रतिष्ठा आदि बृहद आयोजन सम्पूर्ण जन मानस में नये उत्साह को उत्पन्न करते हैं। युवा पीढ़ी को धर्म में जोड़ने में सहायक बनते हैं। सामाजिक संगठन एवं हर्षोल्लास में वृद्धि करते हैं। इससे आपसी प्रेम एवं एकता का माहौल बनता है। जिन धर्म की महिमा होती है।
• मंत्र जाप, स्तुति, ध्यान आदि क्रियाओं के द्वारा त्रियोग की शुद्धि होती है। मन एकाग्र बनता है। वाणी पर संयम बढ़ता है एवं काया स्थिर बनती है। जीवन में शान्ति और आनंद की स्थापना होती है।
इस प्रकार विविध रूप में सम्पन्न किए जाने वाले भिन्न-भिन्न विधिविधानों का मुख्य ध्येय आत्मा की विशुद्धि एवं जन्म-मरण की परम्परा से मुक्ति है। इनके आचरण से आंतरिक समृद्धि बढ़ने के साथ-साथ बाह्य सुख-सम्पत्ति एवं समृद्धि भी सहज रूप में उपलब्ध होती है। विधि-विधानों का उल्लेख परवर्ती ग्रन्थों में सर्वाधिक क्यों?
जब हम आगमेतर ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं तो ज्ञात होता है कि जैन विधि-विधानों की विस्तृत चर्चा लगभग विक्रम की छठवीं शती से पन्द्रहवीं शती तक के ग्रंथों में प्राप्त होती है। प्रश्न हो सकता है कि ऐसा क्यों? क्या विधि-विधान आगम कालीन नहीं है? अथवा अन्य समकालीन परम्पराओं का प्रभाव है? आगम आदि में इनका कोई स्वरूप प्राप्त होता है या नहीं? इसी तरह की कई शंकाएँ ऐतिहासिकता एवं प्रामाणिकता के विषय में उठती है। __ यदि हम आगमों का अनुशीलन करें तो इनमें विधि-विधानों का उल्लेख सांकेतिक रूप में प्राप्त होता है। यह कह सकते हैं कि आगमों में विधि-विधानों के स्वरूप की चर्चा तो है पर वह विस्तृत रूप में नहीं है मात्र कुछ एक क्रियाओं का विकसित स्वरूप ही प्राप्त होता है। परन्तु इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय में भी क्रियाएँ होती थी। परंतु उनका स्वरूप बहुत संक्षिप्त था। जैसे कि तीर्थंकरों की दीक्षा या उनके द्वारा दीक्षित करने के प्रसंग, बारह व्रत ग्रहण करने के प्रसंग आदि आगमों में प्राप्त होते हैं। परमात्मा ने एक वर्ष तक वर्षीदान दिया, फिर माता-पिता एवं ज्येष्ठ जनों की अनुमति पूर्वक दीक्षा हेतु वन में गए, वहाँ पंचमुष्टि लोच कर 'करेमि भंते' सूत्र का उच्चारण कर मुनि बन गए। वर्तमान विधि-विधानों के परिप्रेक्ष्य में यह चर्चा बहुत संक्षिप्त है। प्रश्न हो सकता है ऐसा क्यों? मेरा मानना है कि