Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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इस ज्ञानार्जन में हर तरह की सेवाएं प्रदान करने वाले भक्तिनिष्ठ श्री सुनीलजी बोथरा (रायपुर) का अन्तर्मन से अनुमोदन करती हूँ। साथ ही मनोजजी गोलेच्छा (चेन्नई), प्रीतिजी पारख (जगदलपुर), सीमा छाजेड़ (मालेगांव), मोनिका बेराठी (जयपुर) आदि की सेवाएँ भी सराहनीय रही हैं।
इस कृति को जन-जन तक पहुँचाने के लिए विशेष रूप से कटिबद्ध मालेगांव संघ के पदाधिकारीगण बाबूलालजी संखलेचा, शांतिलालजी छाजेड़, कैलाशजी मेहता आदि समस्त ट्रस्ट मंडल की भावविभोर हो अनुशंसा करती हूँ।
इस ग्रन्थ प्रकाशन के परम सहयोगी श्री जिनकुशलसूरी दादावाड़ी बाड़मेर ट्रस्ट, मालेगांव का नाम इस कृति के साथ सदैव जुड़ा रहेगा। साथ ही उनकी उदारता एवं सत्साहित्य सर्जन की अमरगाथाएँ युग-युगों तक विद्यमान रहेंगी।
इस अनुपम वेला में श्री कैलाश सागर सूरि ज्ञान मंदिर-कोबा, प्राच्यविद्यापीठ-शाजापुर, खरतरगच्छज्ञानभंडार-जयपुर, जिनदत्तसूरिज्ञानभंडार-मुंबई, आदि ग्रंथागार एवं अन्य ग्रन्थालयों के सभी ग्रन्थ और ग्रंथकार मेरे लिए वन्दनीय हैं। ग्रन्थागार के संरक्षणगण एवं कार्यकर्तागण, यथा-मनोजजी, अरूणजी झा आदि से ज्ञानसामग्री उपलब्ध करवाने में विशेष सहयोग प्राप्त हुआ, मैं उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ। ___ मैं अनिल वर्मा का भी आभार ज्ञापित करती हूँ, जिन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ को कम्प्यूटराईज्ड करने में सहयोग प्रदान किया।
इस कृति को नया आकार देने में अनेक विद्वानों की कृतियों का उपयोग हुआ है, उनके प्रति भी कृतज्ञ भाव प्रस्तुत करती हूँ। इस कार्य से विद्वद्वर्ग या पाठकवर्ग यत्किंचित् भी लाभान्वित बनेगा तो मेरे श्रम की सार्थकता होगी। अन्ततः इष्टदेवों-पूज्यवरों से प्रार्थना करती हूँ कि वे मुझे ऐसा आशीर्वाद प्रदान करें कि मेरी श्रुतयात्रा प्रवर्द्धमान रहें। साथ ही जिनाज्ञा विरूद्ध की कुछ भी लिखा गया हो, तो त्रियोग शुद्धि पूर्वक मिच्छामि दुक्कडं।
साध्वी सौम्यगुणाश्री
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