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( ११ ) लिये शास्त्रों में तीर्थों की गणना 'मङ्गलों में कीगई है। वह क्षेत्र मङ्गल हैं। कैलाश, सम्मेदाचल, ऊर्जयंत, (गिरिनार), पावापुर, चम्पापुर आदि तीर्थस्थान अर्हन्तादि के तप. केवल ज्ञानादि गुणों के उपजने के स्थान होने के कारण क्षेत्रमङ्गल हैं। एवं इन पवित्र क्षेत्रों का स्तवन और पूजन 'क्षेत्रस्तवन' है।२
तीर्थस्थल के दर्शन होते ही हृदय में पवित्र आल्हाद की लहर दौड़ती है, हृदय भक्ति से नम जाता है। यात्री उस पुण्यभूमि को देखते ही मस्तक नमा देता है, और अपने पथ को शोधता हुआ एवं उस तीर्थ को पवित्र प्रसिद्धि का गुणगान मधुर स्वर लहरी से करता हुआ आगे बढ़ता है । जिन मंदिर में जाकर वह जिन दर्शन करता है और फिर सुविधानुसार अष्ट
ज्ञान चारित्र तपांसि तद्वन्तश्च साधवस्तदधिष्ठानानि च निर्वाणभूभ्यादिकानि तत्प्रापयुपा यत्वात् शुचिव्यपदेशमर्हन्ति' ।
चारित्रसार पृ० १८० । १-'दोत्रमङ्गलमूर्जयन्तादिकमर्हदादीनां निक्रमण केवलज्ञानादि गुणोत्पत्तिस्थानम्'
-श्रीगोमट्टसार प०२ । २–'अर कैलाश, संमेदाचल, ऊर्जयन्त (गिरिनार), पावापुर,
चम्पापुरादि निर्वाणक्षेत्रनिका तथा समवशरण में धर्मोपदेश के क्षेत्र का स्तवन सो क्षेत्र स्तवन है।'
श्रीरत्नकरण्ड श्रावकाचार (बम्बई ) पृ०१६५ ।
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