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मानस्थंभ भी दर्शनीय बना है । ठहरने के लिये धर्मशालायें हैं । मांगी पहाड़ की चढ़ाई तीन मील है । यद्यपि चढ़ाई कठिन है, परन्तु सावधानी रखने से खलती नहीं है । इस पर्वत परं चार गुफा मंदिर हैं, जिनमें मूलनायक भद्रबाहु स्वामी की प्रतिमा है । अन्य प्रतिमाओं में कुछ भट्टारकों की भी हैं । किन्तु सब ही प्रतिमायें ११ वीं - १२ वीं शताब्दि की हैं। भद्रबाहुस्वामी की प्रतिमा का होना इस बात की दलील है कि उन्होंने इस पर्वत पर भी तप किया था । वन्दना करके यहां से दो मील दूर तुंगी पर्वत है । मार्ग संकीर्ण है और चढ़ाई कठिनसाध्य है, परन्तु सावधानी रखने से बच्चे भी बड़े मजे में चले जाते हैं । इस रास्ते में श्री कृष्णजी के दाह संस्कार का कुंड भी पड़ता है । यदि वस्तुतः वहीं पर बलदेवजी ने अपने भाई नारायण का दाहसंस्कार किया था, तो इस पर्वत का प्राचीन नाम 'शृङ्गी' पर्वत होना चाहिये, क्योंकि 'हरिवंशपुराण' (६२/७३) में उसका यही नाम लिखा है | तुरंगीपहाड़ पर तीन गुफामंदिर हैं, जिनके दर्शन करना चाहिये । प्रतिमायें पुराने ढंग की हैं। उनके स्थान पर नवीन शिल्पकारी की प्रतिमायें विराजमान करने का विचार प्रबन्धकों
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का है; परंतु क्षेत्र की प्राचीनता को बताने वाली वह प्रतिमायें उस अवस्था में ही वहाँ अवश्य रहना चाहिये । यहाँ मूलनायक श्री चंद्रप्रभुस्वामी की प्रतिमा करीब ४ फीट ऊंची पद्मासन है । मार्ग में उतरते हुये एक 'अद्भुतजी' नामक स्थान मिलता है,
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