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खरजाहा अतिशय क्षेत्र यहाँ प्राचीन २५ जैन मंदिर हैं, जिनमें अतीव मनोज्ञ प्रतिमायें विराजमान हैं। मंदिरों की लागत करोड़ों रुपयों की अनुमान की जाती है। शिलालेखों में इसका नाम 'खज्जरवाहक' है खजूरपुर के नाम से भी खजराहा प्रसिद्ध था। कहते हैं कि नगर कोटके द्वार पर सुवर्णरंग के दो खजूर के वृक्ष थे। उन्हीं के कारण वह खजूरपुर अथवा खजराहा कहलाता था। यह नगर बुन्देलखंडकी राजधानी था और चन्देलवंश के राजाओं के समय में चरमोन्नति पर था। उसी समय के बने हुये यहाँ अनेक नयनाभिराम मंदिर और मूर्तियाँ हैं । जैनमन्दिरों में 'जिननाथजी का मंदिर' चित्त को विशेष रीति से आकर्षित करता है । इस मंदिरको सन् १५४ ई०में पाहिल नामक महानुभाव ने दान दिया था। इस मंदिर के मंडपों की छत में अद्भुत शिल्पकारी का काम दर्शनीय है । कारीगर ने अपने शिल्प चातुर्य का कमाल यहाँ कर दिखाया है । मंडपों के खंभों पर बने हुये चित्र दर्शकों को मुग्ध कर लेते हैं । इसका जीर्णोद्धार हो गया है । पहले यहां की यात्रा करने राजा-महाराजा सब ही लोग आते थे। श्री शान्तिनाथजी की एक प्रतिमा १२ फीट ऊँची अति मनोज्ञ है। हजारों प्रतिमायें खंडित पड़ी हुई है । यहाँ के दर्शन कर के वापस सागर आवे । वहाँ से बीना जं० होकर जाखलौन जावे।
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