Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Parishad Publishing House

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Page 139
________________ ( १३२ ) में दो पंचायती मंदिरों में चित्रकारी का काम अच्छा है । ग्वालियर से लश्कर एक मीलकी दूरी पर है । वहाँ जाते हुए मार्ग में दो फरलांग के फासले पर एक पहाड़ है, जिसमें बड़ी २ गुफायें बनी हुई हैं । उनमें विशाल प्रतिमायें हैं । यहां से ग्वालियर का प्रसिद्ध किला देखनेको जाना चाहिये । किले में अनेक ऐतिहासिक चीजें देखने क़ाबिल हैं । ग्वालियर के पुरातन राजाओं में कई जैनधर्मानुयायी थे | कच्छवाहा राजा सूरजसेन ने सन् २७५ में ग्वालियर बसाया था । वह गोपगिरि अथवा गोपदुर्ग भी कहलाता था। कछवाहा राजा कीर्तिसिंहजी के समय में यहाँ जैनियों का प्राबल्य था । उपरान्त परिहारवंश के राजा ग्वालियर के अधिकारी हुये । उन के समय में भी दि० जैन भट्टारकों की गद्दी वहाँ विद्यमान थी । उस समयके बने हुए अनेक जिनमंदिर और मूर्तियां मिलती हैं। उनको बाबर ने नष्ट किया था । फिर भी कतिपय मन्दिर और मूर्तियां अखंडित अवशेष हैं । सब से प्राचीन पार्श्वनाथजी का एक छोटा-सा मन्दिर है । पहाड़ी चट्टानों को काट कर अनेक जिन मूर्तियां बनाई गई हैं । यहाँ अधिकांश मूर्तियाँ श्री आदिनाथ भगवान की हैं । एक प्रतिमा श्रीनेमिनाथजी की ३० फीट ऊँची है । यहाँ से इच्छा हो तो भेलसा जाकर भद्दलपुर (उदयगिरि) के दर्शन करे। भलसा कई जैनी भेलसा को ही दसवें तीर्थङ्कर श्री शीतलनाथजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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