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( १३५ ) और १८ नशियाँ बस्ती के बाहर हैं। कई मंदिर प्राचीन, विशाल और अत्यन्त सुन्दर है। बाबा दुलीचन्दजी का वृहद् शास्त्र भंडार है जैन महा पाठशाला व कन्याशालादि संस्थायें भी हैं । जयपुर को राजा सवाई जयसिंहजी ने बसाया था । बसाने के समय राव कृपारामजी (श्रावगी) वकील दिल्ली दरबार में थे। उन्हीं की सलाह से यह शहर बसाया गया और यह अपने ढंग का निराला शहर है पहले यहाँ के राज दरबार में जैनियों का प्राबल्य था । श्री अमरचन्दजी आदि कई महानुभाव यहाँ के दीवान थे। आज कल भी कई जैनी उच्चपदों पर नियुक्त हैं । मध्यकाल में जैनधर्म की विवेकमई उन्नति करने का श्रेय जयपुर के स्वनामधन्य आचार्यतुल्य पंडितोंकोही प्राप्त है । यहांही प्रातः स्मरणीय पं० टोडरमलजी, पं० जयचन्दजी, पं० मन्नालालजी, पं० सदासुखजी, संघी पन्नालालजी प्रभूत विद्वान् हुये हैं, जिन्होंने संस्कृत प्राकृत भाषाओं के ग्रंथों की टीकायें करके जैनियों का महती उपकार किया है । यहाँ पर एक समुन्नत जैन कॉलिज स्थापित किया जावे तो जैन धर्म की विशेष प्रभावना हो । जयपुर के मन्दिरों में अधिकांश प्रतिमाये प्रायः संवत् १८२६, १८५१, १८६२ और १८६३ की प्रतिष्ठित विराजमान हैं । घी वालों के रास्ते में तेरापंथी पंचायती
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